Book Title: Sharavkachar Sangraha Part 3
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 551
________________ ५१८ श्रावकाचार-संग्रह पदं पञ्चनमस्कारं सत्पञ्चत्रिंशदक्षरम् । अनादिसिद्धमन्त्रादिबहुसंज्ञमकृत्रिमम् ॥३६ महाप्रभावसम्पन्नं सर्वविद्याफलप्रदम् । राज्यस्वर्गापवर्गाणां दायकं मन्त्रनायकम् ॥३७ तियंञ्चोऽपि यदासाधाविवेका अपि नाकिताम् । सम्प्रापुर्बहवो ध्येयं तद्विलोक्य सुखैषिणा ॥३८ 'णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं। णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहणं" ॥३९ घ्यायेदर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । नम इति षोडश वर्ण मन्त्रपदं कामदं धीमान् ॥४० स्मरेच्च पञ्चगुर्वादिवर्णपञ्चकमञ्चितम् । ओमहं ह्रीमपूर्वाणि सन्त्यन्यानि पदानि च ॥४१ सुखदानि पदान्यहंदागमोक्तानि धोधनैः । समस्तान्यपि चिन्त्यानि ध्यानिभिर्मोक्तुमिच्छुभिः ४२ स्तम्भनोच्चाटविद्वेषकारणानि पराणि यः । पदानि चिन्तयत्यज्ञो रागद्वेषाकुलीकृतः ॥४३ मोक्षसौख्यलवाशक्तचेतनो जन्मकर्दमात् । न निर्याति चिरं दुःखलक्षविक्षिप्तमानसः ॥४४ मत्वेत्यनादिमन्त्रादिपदानि पुण्यदानि यः । ध्यायत्यनारतं तस्याऽऽसन्ना भवति मितिः ॥४५ गोपः पञ्चनमस्कारस्मृतेर्भूत्वा सुदर्शनः । मोक्षमाप प्रसिद्धेयं कथास्ति जिनशासने ॥४६ (इति पदस्थम्) पिण्डस्थे धारणाः पञ्च ज्ञेया दिध्यासुभिः शुभाः । पार्थिवीप्रमुखा अत्र वक्ष्यमाणा अनुक्रमात ॥४७ पंच परमेष्ठीके नमस्कार रूप जो पांच पद हैं, जिसमें पैंतीस अक्षर हैं, जो अनादिसिद्ध मंत्र आदि अनेक नामवाला है, अकृत्रिम है, महान् प्रभावसे सम्पन्न है, सर्व विद्यारूप फलको देनेवाला है, राज्य पद, स्वर्ग और मोक्षका दाता है, सभी मंत्रोंका स्वामी है, बहुतसे अविवेकी तिर्यंच भी जिसे पाकर देवपनेको प्राप्त हए हैं, ऐसे उस अनादिसिद्ध मंत्रका सूखके इच्छक मनुष्यको ध्यान करना चाहिए ।। ३६-३८ ॥ वह मंत्र इस प्रकार है-'आरहन्तोंको नमस्कार हो, सिद्धोंको नमस्कार हो, आचार्योंको नमस्कार हो, उपाध्यायोंको नमस्कार हो और लोकमें प्राणियोंका कल्याण करनेवाले सर्व साधुओंको नमस्कार हो ॥ ३९ ॥ तथा बुद्धिमान् श्रावक 'अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः' इस सोलह अक्षरके मनोवांछित अर्थको देनेवाले मंत्रका ध्यान करे ॥ ४० ॥ पंच परमगुरुके वाचक उनके आदि अक्षर-'अ सि आ उ सा' को नमः पद लगाकर स्मरण करे। इसी प्रकार बद्धिमानोंको 'ॐ ह्रीं अह नमः सिद्धेभ्यः' इत्यादि अन्य मंत्र पदोंका स्मरण करना चाहिए। ये सभी पद अर्हद आगममें कहे गये हैं और सुखके देनेवाले हैं अतः मुक्तिके इच्छुक ध्यान करने वाले मनुष्योंको इन सभी पदोंका अपनी शक्ति के अनुसार भक्तिके साथ चिन्तवन करना चाहिए ।। ४१४२॥ राग-द्वेषसे आकुल-व्याकुल हुआ मूर्ख मनुष्य स्तम्भन, उच्चाटन और विद्वेष- करनेवाले पदोंका चिन्तवन करता है, वह मोक्षके सुखका लवलेश भी पाने में असमर्थ होकर लाखों दुःखोंसे विक्षिप्त चित्त होता हुआ संसाररूपी कीचड़से चिरकाल तक भी नहीं निकलता है ।। ४३-४४ ।। ऐसा जानकर जो मनुष्य पुण्य-प्रदायक इन अनादिमंत्र आदिके पदोंको संसारसे छूटनेकी इच्छासे निरन्तर ध्यान करता है, उसके मुक्ति समीप होती जाती है ।। ४५ ।। देखो-वह गुवाला पंचनमस्कार मंत्रके स्मरण करनेसे सुदर्शन सेठ होकर मोक्षको प्राप्त हुआ, यह कथा जिनशासनमें प्रसिद्ध है ।। ४६॥ ( इस प्रकार पदस्थ ध्यानका वर्णन किया ) ध्यान करने वाले मनुष्योंके पिण्डस्थ ध्यानमें पाथिवी आदिक वक्ष्यमाण पांच धारणाएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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