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श्री पं० गोविन्दविरचित पुरुषार्थानुशासन-गत श्रावकाचार
५२५ ज्ञात्वा निदर्शनैरित्याविभिभूरिफलं सुधीः । मुक्त्यभीप्सुर्यथाशक्तिविभूयात्प्रोषषवतम् ॥१८
(इति प्रोषधप्रतिमा ४) अथ कार्यः परित्यागः सचित्तस्य विपश्चिता। क्रमेण पञ्चमों पूतां प्रतिमामाश्क्क्षुणा ॥१९ सचित्तस्याशनात्यापं पापतस्ताप उल्वणः । इति सम्यग्विदन्नत्ति सचितं कः सचेतनः ॥२० सचित्तं जलशाकान्तफलादि जिनशासनात् । यद्यथा प्रासुकं स्यात्तत्तथा ज्ञात्वा विधीयते ॥२१ बीजमन्नं फलं चोप्तं धरायां यत्प्ररोहति । जलं हरितकायांश्चेत्यादिकं स्यात्सचित्तकम् ॥२२ दलितं शस्त्रसंच्छिन्नं लवणाम्लादि मिश्रितम् । अग्निपक्वं च यत्सवं तज्जिनः प्रासुकं मतम् ॥२३ परैर्यद् व्यसुतां नीतं वस्तु भक्षति तत्कृती । गृहस्थोऽश्नात्यशक्तत्वात्स्वयं नीत्वा च कश्चन ॥२४ त्यजेत्सचित्तमित्यादि युक्तिविद्यो जितेन्द्रियः । अप्रमत्ततया तस्य नासत्कर्मास्रवो भवेत् ॥२५
(इति सचित्तत्यागप्रतिमा ५) अथ संसृतिसान्तत्यभोरवो जहतु विघा । उग्रदुर्गतिपन्यानं मैथुनं दिवसे बुधाः ॥२६ दिवा निशि च कुर्वाणो मैथुनं जननिन्दितम् । दुश्चिन्ताव्याप्तचेतस्कः सचिनोत्युर पातकम् ॥२७ सञ्चितैनश्च योऽवश्यं नरो भवति नारकः । दुःखं निरन्तरं तस्य यत्स्यात्तत्केन वय॑ते ॥२८ : . मत्वेति यस्त्यजेवह्नि सुरतं सुकृती पुमान् । तस्या, ब्रह्मचर्येण गलत्यायुः सुमेधसः ॥२९ भी आर्हत मतमें बहुत प्रसिद्ध है ।। १६-१७ ॥ इत्यादि दृष्टान्तोंसे उपवासका भारी फल जानकर मोक्षके इच्छुक बुद्धिमान् मनुष्यको यथाशक्ति प्रोषधव्रत धारण करना चाहिए ॥ १८॥ (यह चौथी प्रोषध प्रतिमाका वर्णन किया ।)
__ अब क्रमसे पांचवीं पवित्र सचित्तत्याग प्रतिमा पर आरोहण करनेके इच्छुक विद्वान्को सचित्त वस्तुओंका त्याग करना चाहिए ॥ १९ ॥ सचित्त वस्तुके भक्षणसे पाप होता है और पापसे उग्र सन्ताप होता है, इस प्रकार जानता हुआ भी कोन सचेतन पुरुष सचित्त वस्तुको खाता है ।। २० ।। जल, थल, अन्न और फल आदिक सचित्त पदार्थ जिस प्रकारसे प्रासुक होते हैं, वैसा जिनशासनसे जानकर उसी प्रकारसे काममें लिया जाता है ॥ २१ ॥ बीज, अन्न, फल जो भूमिमें बोया गया अंकुरित हो जाता है, तथा जल और हरितकाय सभी वनस्पति इत्यादिक सचित्त होते हैं ।। २२ ॥ चक्की आदिसे दली गई, शस्त्र आदिसे काटी गई, नमक, खटाई आदिसे मिली हुई, और अग्निसे पकी हुई, इन सभी वस्तुओंको जिनदेवने प्रासुक कहा है ॥ २३ ॥ कर्तव्यका जानकार गृहस्थ दूसरोंके द्वारा प्रासुक की गई वस्तुको खाता है। कोई गृहस्थ अशक्त होनेसे सचित्तको लाकर और स्वयं प्रासुक करके खाता है ।। २४ ॥ युक्तिका वेत्ता जो जितेन्द्रिय पुरुष सचित्त इत्यादि अप्रासुक वस्तुके खानेका त्याग करता है, अप्रमत्त होनेसे उस पुरुषके खोटे कर्मोका आस्रव नहीं होता है ।। २५ । इस प्रकार पांचवीं सचित्त त्याग प्रतिमाका वर्णन किया।
__ जो संसारकी सन्तति ( परम्परा )से डरनेवाले ज्ञानीजन हैं उन्हें घोर दुर्गतिके मार्गस्वरूप दिनमें मैथुन सेवन मन वचन कायसे छोड़ देना चाहिए ॥ २६ ॥ लोगोंसे निन्दित मैथुनको दिन
और रातमें करनेवाला मनुष्य खोटो चिन्ताओंसे व्याप्त चित्तवाला होकर भारी पापका-संचय करता है ।। २७ ॥ और पापोंका संचय करनेवाला मनुष्य अवश्य ही मर कर नारकी होता है। वहां पर उसको जो निरन्तर दुःख होता है, उसे कोन वर्णन कर सकता है ।। २८ ॥ ऐसा जानकर मनुष्यको दिन में मैथुन सेवन छोड़ना चाहिए। ऐसे त्यागी सुबुद्धि वाले पुरुषकी आधी आयु ब्रह्म
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