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शुद्धिपत्रक के सम्बन्ध में नम्र निवेदन
प्रथम भागके पृष्ठ ४१२के 'णमो जिणाण' आदि सूत्रोंको वहाँके रिक्त स्थान पर इस प्रकारसे संशोधन करनेके लिए पाठकोंसे निवेदन है
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ॐ ह्रीं हैं णमो जिणाणं १ । ॐ ह्रीं हं णमो ओहिजिणाणं २ । ॐ ह्रीं हैं णमो परमोहिजिणाणं ३ | ॐ ह्रीं हैं शमो सव्वोहिजिणाणं ४ । ॐ ह्रीं हं णमो अणं तोहिजिणाणं ५ । ॐ ह्रीं ह णमो कोट्टबुद्धीणं ६ । ॐ ह्रीं हैं णमो बीजबुद्धीणं ७ । ॐ ह्रीं हं णमो पादाणुसारीणं ८ । ह्रीं हं णमो संभिण्णसोदाराणं ९ । ॐ ह्रीं हैं णमो पत्तयेबुद्धीणं १० । ॐ ह्रीं हैं णमो सयंबुद्धीणं ११ । ॐ ह्रीं हं णमो बोहियबुद्धीणं १२ । ॐ ह्रीं हैं णमो उजुमदीणं १३ । ॐ ह्रीं हैं णमो विउलमदी १४ । ॐ ह्रीं हैं णमो दसपुव्वीणं १५ । ॐ ह्रीं हैं णमो चोद्दसपुव्वीणं १६ । ॐ ह्रीं हैं णमो अट्ठगमहाणिमित्तकुसलाणं १७ । ॐ ह्रीं हं गमो विडव्वणइड्डि पत्ताणं १८ । ॐ ह्रीं हैं णमो विज्याहराणं १९ । ॐ ह्रीं हं णमो चारणाणं २० । ॐ ह्रीं हैं णमो पण्णसमणाणं २१ । ॐ ह्रीं हैं णमो आगासगामीणं २२ । ॐ ह्रीं हैं णमो आसीविसाणं २३ । ॐ ह्रीं हैं णमो दिट्ठिविसाणं २४ । ॐ ह्रीं हं णमो : सग्गतवाण २५ । ॐ ह्रीं हैं णमो दित्ततवाणं २६ । ॐ ह्रीं हैं णमो तत्ततवाणं २७ । ॐ ह्रीं हैं णमो महातवाणं २८ । ॐ ह्रीं हैं णमो घोरतवाण २९ । ॐ ह्रीं हैं णमो घोरपरक्कमाणं ३० । ॐ ह्रीं हैं णमो घोरगुणाणं ३१ । ॐ ह्रीं हैं णमो घोरगुणबम्भचारीणं ३२ । ॐ ह्रीं र्हं णमो सहपत्ता ३३ । ॐ ह्रीं हैं णमो खेलोसहिपत्ताणं ३४ । ॐ ह्रीं हं णमो जल्लोसहिपत्ताणं ३५ ॥ ॐ ह्रीं हं णमो विट्ठोसहिपत्ताणं ३६ । ॐ ह्रीं हैं णमो सव्वोसहिपत्ताणं ३७ । ॐ ह्रीं हैं णमो मणबलीणं ३८ । ॐ ह्रीं हैं णमो वचिबलीणं ३९ । ॐ ह्रीं हं णमो कायबलीणं ४० । ॐ ह्रीं हैं णमो अमियसवीणं ४१ | ॐ ह्रीं हैं णमो महुसवीणं ४२ । ॐ ह्रीं हैं णमो सप्पिसवीणं ४३ । ॐ
हैं णमो खीरसवीणं ४४ । ॐ ह्रीं हं णमो अक्खीणमहाणसाणं ४५ । ॐ ह्रीं हैं णमो सिद्धायदणाणं ४६ । ॐ ह्रीं हैं णमो वड्डुमाणाणं ४७ । ॐ ह्रीं हैं णमो महादिमहावीरखड्ढमाणाणं ४८ ।
तीसरे भागके पृ० १९९पर पूज्यपाद श्रावकाचारका १००वाँ श्लोक अशुद्धि - बहुल है दूसरी प्रति उपलब्ध न होनेसे उसका संशोधन संभव नहीं हो सका और इसी कारण उसका भाव ठीक रीतिसे समझमें न आनेके कारण उसका अर्थ भी नहीं दिया जा सका है ।
इसी भाग के पृ० २४५पर श्लोकात ३५९का उत्तरार्ध छपनेसे रह गया है, जो इस प्रकार है
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कुर्वन्ति धर्म दशघोज्ज्वलं ये ते मानवा मोक्षपदं व्रजन्ति ॥ ३५९ ॥
इसी भागके पृ० ४४९पर सिद्धचक्रयन्त्र और बृहत्सिद्धचक्रयन्त्र मुद्रित होनेसे रह गये हैं, उन्हें शुद्धिपत्रक अन्तमें दिया जा रहा है।
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