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श्रावकाचार-संग्रह
बोज मोक्षतरोवंशं भवतरोमिथ्यात्वमाहुजिनाः
प्राप्तायां दृशि तन्मुमुक्षुभिरलं यत्नो विधेयो बुधैः । संसारे बहुयोनिजालजटिले भ्राम्यन् कुकर्मावृतः
क्व प्राणी लभते महत्यपि गते काले हि तां तामिह ॥३ सम्प्राप्तेऽत्र भवे कथं कथमपि वाघीयसाऽनेहसा
मानुष्ये शुचिदर्शने च महतां कार्य तपो मोक्षदम् । नो चेल्लोकनिषेषतोऽथ महतो मोहावशक्तेरय ।
___ सम्पयेत न तत्तदा गृहवतां षट्कर्मयोग्यं व्रतम् ॥४ दृङ्मूलवतमष्टधा तदनु च स्यात्पश्चषाऽणुवतं
शोलाख्यं च गुणवतं त्रयमतः शिक्षाश्चतस्रः पराः । रात्री भोजनवजनं शुचिपटात्पेयं पयः शक्तितः
मौनादिवतमप्यनुष्ठितमिदं पुण्याय भव्यात्मनाम् ॥५ हन्ति स्थावरदेहिनः स्वविषये सर्वास्त्रसान् रक्षति
ब्रूते सत्यमचौर्यवृत्तिमबलां शुद्धां निजां सेवते । विवेशवताण्डवर्जनमतः सामायिकं प्रोषधं
वानं भोगयुगप्रमाणमुररीकुर्याद गृहीति व्रती ॥६ मोक्षरूपी वृक्षका बीज सम्यग्दर्शन है और संसाररूपी वृक्षका बीज मिथ्यादर्शन है, ऐसा जिन देवोंने कहा है, इसलिए मुमुक्षु जनोंको प्राप्त हुए सम्यग्दर्शनको रक्षाके लिए प्रबल प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि नाना योनियोंके जालसे जटिल इस संसारमें खोटे कर्मोसे बंधा हुआ यह प्राणी अनादि कालसे परिभ्रमण करता हुआ आ रहा है, ( वर्तमान भवमें बड़े पुण्योदयसे यह सम्यक्त्व-रत्न प्राप्त हुआ है। उसके छूट जाने पर ) आगे बहुत कालके बीत जाने पर भी फिर उसे कहाँ पा सकता है। सारांश यह कि सम्यग्दर्शनको प्राप्ति अत्यन्त कठिन है, अतः प्राप्त सम्यक्त्वकी भले प्रकारसे रक्षा करनी चाहिए ॥ ३ ॥
संसारमें परिभ्रमण करते हुए अनन्त कालके बीत जाने पर बड़ी कठिनाईसे महान् पुण्योदयसे यह मनुष्य-भव और पवित्र सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ है, इसलिए बधजनोंको मोक्षका देनेवाला तप करना चाहिए । यदि पारिवारिक लोगोंके निषेधसे, प्रबल मोहके उदयसे अथवा असामर्थ्यसे तप धारण नहीं किया जा सके, तो गृहस्थोंको देवपूजा आदि षट् कर्मोके योग्य व्रतका पालन तो अवश्य ही करना चाहिए ॥ ४ ॥
__ गृहस्थको चाहिए कि वह सर्वप्रथम सम्यग्दर्शनपूर्वक आठ प्रकारके मूलगुणोंको धारण करे, तत्पश्चात् पांच प्रकारके अणुव्रत, तथा शील नामसे प्रसिद्ध तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतको पालन करे । रात्रिमें भोजनका परित्याग करे और पवित्र वस्त्रसे छना हुआ पानी पीने, तथा शक्तिके अनुसार मौनव्रत आदि अन्य व्रतोंका अनुष्ठान करे। क्योंकि भली-भांतिसे पालन किये ये व्रत भव्य जीवोंको पुण्यके उपार्जन करनेवाले होते हैं ॥ ५ ॥
यद्यपि गृहस्थ अपनी क्षुधा-पिपासाकी शान्तिके लिए एकेन्द्रिय स्थावर जीवोंको मारता है, तथापि वह द्वीन्द्रियादि समस्त त्रस जीवोंकी रक्षा करता है, सत्य बोलता है, चोरी नहीं करता है,
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