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श्रावकाचार-संग्रह अमलसलिलै: सुधीखण्डैः शुचिकलमाक्षतः
___ सुरभिकुसुमैः सन्नैवेद्यैः प्रकाशकदीपकैः । कृतपरिमलैधू पैः पक्कैः फलैः कुसुमाञ्जलीन्
जिनश्रुतगुरुभ्यो यच्छन्तः प्रयान्ति जनाः शिवम् ॥१८० पूजां वितन्वन्ति जिनेश्वराणां सदाष्टधा भावविशुद्धचित्ताः ।
ये श्रावकाः तापविनाशनार्थ ते यान्ति मोक्ष विहितात्मसौख्यम् ॥१८१ 'एकद्वित्रिचतुःपञ्चरससप्तगजग्रहाः । आशाशङ्करसंक्रान्तित्रयोदशमलान्विताः ॥१८२ प्रमावभावनोपेता एते त्याज्या मुमुक्षुभिः । इतरे पालनीयाः स्युनिर्ग्रन्थैः पञ्चधा स्मृतेः ॥१८३ बहुना जल्पितेनात्र कि प्रयोजनमुच्यते । श्रावकाणामुभौ मार्गी दानपूजाप्रतिनौ ॥१८४ प्राप्त होते हैं ॥१७९॥ जो भव्य निर्मलजलसे, उत्तम श्रीखण्डसे, पवित्र शालि-तन्दुलोंसे, सुगन्धित पुष्पोंसे, उत्तम नैवेद्योंसे, प्रकाशवाले दीपकोंसे, परिमल धूपसे, पके हुए फलोंसे जिनदेव, शास्त्र और गुरुको पुष्पांजलि अर्पण करते हुए पूजा करते हैं, वे मोक्षको जाते हैं ॥१८०॥ जो भाव विशुद्ध चित्तवाले श्रावक अपने पापोंके विनाशके लिए जिनेश्वरोंकी सदा आठ प्रकारसे पूजा करते हैं, वे आत्मसुख-विधायक मोक्षको जाते हैं ।।१८१।। एक, दो, तीन, चार, पांच, रस (छह), सात, गज (आठ), ग्रह (नौ), आशा (दश दिशा), शंकर (ग्यारह), संक्रान्ति (बारह), तेरह, मल (चौदह) से युक्त, तथा प्रमाद (पन्द्रह) और भावना (सोलह) को संख्यासे समन्वित दोष मुमुक्षुजनोंको छोड़ना चाहिए। शेष पाँच प्रकार गुण निर्ग्रन्थजनोंको पालन करना चाहिए ।।१८२-१८३।। विशेषार्थ-इन दो श्लोकोंमें जिन एक, दो आदि संख्यावाले दोषोंको छोड़नेको सूचना की गई है, उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-एक संसार ही त्याज्य है, अथवा सर्वपापोंमें मिथ्यात्व सबसे बड़ा पाप है, अतः मुक्ति पानेके इच्छुक जन सर्वप्रथम एक मिथ्यात्वको छोड़ें। तत्पश्चात् राग और द्वेष इन दो का त्याग करें, पुनः माया, मिथ्या, निदान इन तीन शल्योंका त्याग करें, पुनः चार विकथाओंका अथवा अनन्तानुबन्धी आदि चार कषायोंका और प्रकृतिबन्ध आदि चार बन्धोंका त्याग करें, पुनः पाँचों मिथ्यात्वोंका अथवा कर्मबन्धके कारण हिंसादि पांच पापोंका और मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग इन पांचका त्याग करें। छह अनायतनों (अधर्म स्थानोंका) तथा छह रसोंका त्याग करें, सात व्यसनोंका त्याग करें, सम्यक्त्वके शंका, कांक्षा आदि आठ दोषोंका और आठ मदका त्याग करें, नौ नोकषायोंका त्याग करें, दश प्रकारके बाह्य परिग्रहका त्याग करें, ग्यारह रुद्रों जैसी रौद्र परिणतिवाली खोटी प्रतिमाओंका त्याग करें, बारह प्रकारके असंयमका त्याग करें, राग, द्वेष, परिणतिरूप तेरह काठियोंका' त्याग करें, चौदह प्रकारके अन्तरंग परिग्रहका त्याग करें, पन्द्रह प्रकारके प्रमादका त्याग करें और अनन्तानुबन्धी आदि १. उ प्रतो टिप्पणी-१. संसारः, २. रागद्वेषौ, ३. अनर्थदण्डानि, ४. विकथा, ५. मिथ्यात्व,
६. अनायतनानि, ७. व्यसनानि, ८. मदानि, ९. नोकषायानि, १०. दशधा परिग्रहः, ११. कुप्रतिमा,
१२. अव्रतानि, १३. काठिया, १४. मलकारणानि, १५. प्रमादानि । १. जेवट मारै बाँट में करहिं उपद्रव जोर । तिन्हें देश गुजरात में कहहिं काठिया चोर ॥१॥ जूबा आलस शोक भय, कुकथा कौतुक मोह । कृपण बुद्धि अज्ञानता भ्रम निद्रा मद मोह ॥२॥
(बनारसी विलास)
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