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श्रावकाचार-सारोद्धार नीयन्तेऽत्र कषाया हिंसाया हेतवो यतस्तनुताम् । सल्लेखनामपि ततः प्राहुरहिंसाप्रसिद्धयर्थम् ॥३६६ जीवितमरणाशंसा सुखानुबन्धो निदानमपि मुनिभिः । सुहृदनुरागः पञ्च प्रोक्ताः सल्लेखनाकाले ॥३६७ यस्मिन् स्वर्णमहीधरो मशकतां सद्योततां चन्द्रमास्तारात्वं तनुते हिमांशुरणुतामष्टौ कुलक्ष्माभूतः । तत्त्रैलोक्यमपि स्फुरद्यदमल ज्ञानाम्बुधो बुदबुदाकारत्वं कलयत्यजय्यमहिमा नेमिः स भूयान्मुदे ॥३६८ धूतं मांसं सुरा वेश्या पापधिः परकामिनी।
चौर्येण सह सप्तेति व्यसनानि विदूरयेत् ॥३६९ तत्र धूतम्
सम्पदल्लीकुठारो निखिलविपदपामम्बुधिर्वासभूमि
यायाः सत्यशौचाम्बुजहिममयशो राक्षसः केलिशैलः । विश्वासाम्भोदवायुनंरकपुरमुखं दूषणानां निदानं
स्वर्गद्वारस्य विघ्नो धनवृजिनखनिस्त्यज्यतां द्यूतमेतत् ॥३७० बिलेशयैरिव स्फारदुरोवरदुराशयैः । प्राणिभिः प्राणघातेऽपि जनानेच्छन्ति सङ्गमम् ॥३७१ क्षणार्धमपि यश्चित्ते विधत्ते द्यूतमास्पदम् । युधिष्ठिर इवाप्नोति व्यापदं स दुराशयः ॥३७२ का घात करता है उसका वह मरण वास्तवमें आत्मघात है ॥३६५।। इस समाधिमरणमें यतः हिमाके कारणभूत कषाय क्षीण किये जाते हैं, अत आचार्योने सल्लेखनाको अहिंसाकी सिद्धिके हो लिए कहा है ॥३६६।। ___जीविताशंसा, मरणाशंसा, सुखानुबन्ध, निदान और मित्रानुराग ये पाँच सल्लेखना कालमें नियोंने अतीचार कहे हैं ॥३६॥
जिनके स्फुरायमान निर्मलज्ञान रूप समुद्र में सुवर्ण-शैल सुमेरु मशक (मच्छर) के समान च्छताको धारण करता है, शीतल किरणोंवाला चन्द्रमा ताराके या खद्योत (जुगनू) की तुलनाको पाप्त होता है, आठों ही कुलाचल पर्वत अणुकी समतावाले हो जाते हैं और यह सम्पूर्ण त्रैलोक्य बुद्बुद (जलका बबूला) के आकारको धारण करता है, वे अजेय महिमावाले नेमिप्रभु सबके हर्षके बढ़ानेवाले हों ॥३६८॥
जुआ, मांस, मदिरा, वेश्या, शिकार, परस्त्री, और चोरी इन सातों ही व्यसनोंको दूर करे ।।३६९|| इन व्यसनोंमें जुआ खेलना सबसे बड़ा अनर्थकारी व्यसन है, क्योंकि यह सम्पत्तिरूपी वल्लीको काटनेके लिए कुठार है, सम्पूर्ण विपत्तिरूप जलोंके लिए जलनिधिके समान है, मायाचारकी निवासभूमि है, सत्य और शौचरूप कमलोंके लिए हिमपात है, क्रीडा गिरिका किसीके वशमें नहीं आनेवाला राक्षस है, विश्वास रूप मेघोंको उड़ानेके लिए मेघ है, नरकरूप नगरका मुख है दूषणोंका निदान है, स्वर्गके द्वारका विघ्नरूप द्वारपाल है और सघन पापोंकी खानि है, ऐसे द्यतको सर्वथा छोड देना चाहिए ॥३७०॥ विलोंमें सोनेवाले सर्पोके समान अत्यन्त खोटे अभिप्रायवाले इन दुर्जन जुआरी लोगोंके साथ सज्जन पुरुष तो प्राण घात होनेपर भी संगम नहीं करना चाहते हैं ।।३७१।। जो पुरुष आधे क्षणके लिए अपने चित्तमें इस द्यूतको स्थान देता है, वह खोटे
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