________________
सरस्वती
[भाग ३६
रेज़ी के व्यवहार का क्या प्रयोजन है ? वर्षों के परिश्रम के कर हम अपने छात्रों का बहुत बड़ा अपकार कर रहे हैं । पश्चात् भी हमारे नवयुवकों को अपना काम चलाने भर की भला अपने जीवन में सम्पादक या व्यापारी का काम भी अँगरेज़ी में योग्यता नहीं होती । अँगरेज़ी के माध्यम- करनेवाले छात्र के लिए स्कूल में पढ़ाये जानेवाले द्वारा पढ़े हुए किसी भी शास्त्र की पूर्ण योग्यता उन्हें नहीं रेखागणित या बीजगणित किस प्रयोजन के हैं ? वर्ष होती। अतः राष्ट्रीय शिक्षा की समुन्नति तब तक नहीं हो में तीन बार अपने विषय की परीक्षा पास करने का सकती जब तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा नहीं होता। अवसर प्रत्येक छात्र को मिलना चाहिए। इंग्लैंड और
परन्तु श्रीमती सरोजनी नायडू और प्रिंसपल शेषाद्रि दूसरे देशों में तीन-चार ऐच्छिक विषयों में से किसी ऐसे विद्वान् अँगरेज़ी को ही शिक्षा का माध्यम बनाने पर एक या दो की परीक्षा कोई भी छात्र प्रथम अवसर ज़ोर देते हैं। यह आश्चर्य की बात है, क्योंकि भारतवर्ष की परीक्षा में पास कर सकता है और बाकी विषयों की संस्कृति संसार की किसी भी संस्कृति से हीन नहीं है। को तीन मास पश्चात् होनेवाली दूसरी परीक्षा में पास कर फिर हमारी भाषा भी ऐसी नहीं है कि उसमें उच्च विचार लेता है । यह बड़े सुभीते की बात है। यहाँ ऐसा मिडिल न प्रकट किये जा सकें। जब काशी-विद्यापीठ, कांगड़ी- स्कूल की पढ़ाई समाप्त होने पर ही करना उचित होगा। गुरुकुल, हिन्दू-विश्वविद्यालय तथा उस्मानिया-विश्वविद्या- यहाँ तक पहुँचने पर छात्र अपना उत्तरदायित्त्व समझने लय ऐसी संस्थायें देशी भाषाओं के द्वारा ऊँची से ऊँची लग जाते हैं । विशेष विषयों के प्रति प्रत्येक छात्र की रुचि शिक्षा सफलतापूर्वक दे रही हैं और जिनकी प्रशंसा पहचानने के लिए मिडिल क्लास तक की पढ़ाई पर्याप्त मेकेंज़ी साहब जैसे शिक्षा के विशेषज्ञ उच्च अधिकारी भी है। उसके पश्चात् उसके ऊपर अरुचिकर विषयों की स्वयं कर चुके हैं तब कोई कारण नहीं देख पड़ता कि पढ़ाई का भार नहीं लादना चाहिए । अनुभवी और हमारे बालकों के ऊपर अँगरेज़ी-भाषा का भार लादा जाय। शिक्षित अध्यापक और स्वयं छात्र भी यह बहुत अच्छी
जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूँ, प्राइमरी स्कूलों से ही तरह कह सकते हैं कि उनकी रुचि किस विषय की शिक्षा के पाठ्य-क्रम में कई विषयों-(व्यावसायिक, चित्र- अोर है। कला तथा शिल्प-सम्बन्धी) का समावेश होना चाहिए, देशी भाषाओं में शिक्षा का माध्यम करने के साथ जिससे उपयुक्त बालक को उपयुक्त शिक्षा दी जा सके। साथ शिक्षा का स्टैण्डर्ड अाज की अपेक्षा ऊँचा करना सबकी रुचि एक नहीं होती-'मुंडे मुंडे रुचिर्भिन्ना'। हर होगा, जिससे साधारण नागरिकता के लिए मिडिल स्कूल एक मनुष्य प्रतिभावान् होता है, ऐसा मेरा विश्वास है। की पढ़ाई पूर्ण साबित हो सके। अध्यापकों और छात्रों में परन्तु उसकी प्रतिभा अपने विषय को पाकर ही विकसित अधिक प्रेम और अधिक सम्पर्क स्थापित करने के लिए होती है। प्रत्येक छात्र साहित्य, गणित, भूगोल, इतिहास, यह उचित होगा कि प्रारम्भिक कक्षात्रों को छोड़कर विज्ञान, चित्रकला एवं शिल्पकला में एक साथ ही रुचि बाकी कक्षाओं के छात्रों के लिए अनिवार्य रूप से नहीं रख सकता । बीजगणित या रेखागणित की जो शिक्षा रेज़िडेंशल स्कूल होने चाहिए। ये स्कूल केवल किताबी हाईस्कूलों में दी जाती है वह उन छात्रों के किस काम की है शिक्षा देनेवाली या अकर्मण्य पुरुष पैदा करनेजो उन विषयों के पढ़ने में रत्तीभर रुचि नहीं रखते और उनको वाली संस्था न बनाये जायें। व्यावहारिक ज्ञान की भारस्वरूप ही समझते हैं । साधारण व्यावहारिक जीवन के आवश्यकता जिस प्रकार कालेज में पूर्णता को प्राप्त लिए प्रत्येक शास्त्र के जितने ज्ञान की आवश्यकता है। होनी चाहिए, उसी प्रकार उसका प्रारम्भ स्कूल से ही उतना आज-कल के अँगरेजी स्कूलों की आठवीं कक्षा तक हो जाना चाहिए । परन्तु जब यहाँ के कालेजों में ही की पढ़ाई में प्राप्त हो जाता है। आठवीं कक्षा के बाद सब व्यावहारिक शिक्षा नहीं दी जाती है तब स्कूलों की क्या विषय ऐच्छिक होने चाहिए । वर्तमान क्रम को जारी रख- बात है। स्कूल या कालेज से निकले हुए छात्र मामूली
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com