Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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आचार्य श्री कालू गणी व्यक्तित्व एव कृतित्व : ६
भावी आचार्य की नियुक्ति
स० १९६६ मे डालाणी का शरीर अस्वस्थ हो गया। वे अपने दायित्व के प्रति सजग थे। मुनि मगनलालजी ने अपनी प्रार्थना भी आचार्यवर के चरणों मे प्रस्तुत कर दी। श्रावण कृष्णा एकम को अपने उत्तराधिकार का पत्र लिख दिया। उस समय रूपचन्दजी सेठिया और साध्वी प्रमुखा जेठाजी बाहर थे। तीसरा कोई व्यक्ति आसपास भी नही था। डालगणी ने उस पत्र को पुठे मे सुरक्षित रख दिया और साधु-सघ को उसकी सूचना दे दी। समूचा सघ हर्षविभोर हो गया। अब सबका मन भावी आचार्य का नाम जानने को छटपटाने लगा। कुछ साधुओ और श्रावको ने डालगणी से प्रार्थना की आपने भावी व्यवस्था कर दी, उसके लिए हम आपके कृतज्ञ है। हम सबकी इच्छा है कि आप युवाचार्य का नाम प्रकट करें और वे आपके चरणो मे बैठकर आपके अनुभवो का लाभ लें। डालगणी ने इस प्रार्थना को एक मुस्कान मे ही टाल दिया। साधुओ
और श्रावको की भावना पूरी नहीं हुई। ____ लाडणू के ठाकुर आणदसिंहजी थे। वे डालगणी के प्रति बहुत ही श्रद्धा रखते थे। उन्हें पता चला कि डालगणी ने अपना उत्तराधिकारी नियुक्ति कर दिया। उनके मन मे जिज्ञासा पैदा हुई। वे डालगणी के पास आए। उन्होने कहा मैंने सुना है कि आपने उत्तराधिकारी का नाम लिख दिया है । मेरे मन मे उन्हें देखने की उत्सुकता है । इसलिए मैं अचानक अकेला आया हू । डालगणी उनके प्रति बहुत ही कृपालु थे। उन्होने एक साधु से कहा मुनि कालूजी को बुलाओ। साधु ने मुनि कालू से कहा- आचार्यवर आपको याद कर रहे है । वे तत्काल उस मुनि के साथ आए। मुनि कालू जैसे ही दृष्टिगोचर हुए, वैसे ही डालगणी ने उन्हे वापस भेज दिया । ठाकुर साहब ने भावी आचार्य के दर्शन कर लिए । कालगणी ने कहा- अभी यह नाम आप तक ही सीमित रहे। इसका कही भी प्रचार न हो। मैंने जानबूझकर इसे गुप्त रखा है और मैं अभी इसे गोपनीय ही रखना चाहता हू। [कुर साहब ने प्रतिज्ञापूर्वक कहा आप निश्चिन्त रहे, यह रहस्य कही भी उद्घाटित नही होगा । ठाकुर साहब जैसे ही नीचे आए, लोगो ने उन्हे घेर लिया और भावी आचार्य का नाम जानने का प्रयत्न किया। ठाकुर साहब वोले आप मुझ से यह बात न पूछे। यदि भावी आचार्य का नाम प्रकट होता तो आप मुझे नहीं पूछते । यह प्रकट नही है । आचार्यवर ने यदि मेरे सामने उसे प्रकट किया है तो यह सोच समझकर ही किया है कि मैं उसे प्रकट नही करूआचार्यवर का मुझ ५२ जो विश्वास है, उसे मैं कभी आघात नही पहुचाऊगा । आप धैर्य रखें, जो है वह अपने आप सामने आ जाएगा। डालगणी के जीवन काल मे पत्र रहस्य ही वना रहा । भावी आचार्य का नाम जानने की उत्सुकता पूरी नही हुई । अनुमान चलते रहे, लोग अटकलें लगाते रहे । मुनि कालू की