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卐 साक्षी है । आर्गे मोक्षका कारण ज्ञानकू कहा है, नताविक पाले तौऊ ज्ञानविना मोक्ष न होय !
ऐसें कहा है। आगें मोक्ष साधनेवालाका स्वरूप कहा है। आगें परमार्थस्वरूप मोक्षका कारण ... समय कहि, अन्यका निषेध करि अर कर्म है सो मोक्षका कारणकू घाते है, ताका दृष्टांत करि घातना
दिखाया है। अर कहा है, सो कर्म आप वंधस्वरूपही है। अर सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र मोक्षका , ' कारण है । तिनिका प्रतिपक्षी घातक कहे हैं । सम्यक्त्वका प्रतिपक्षी मिथ्यात है। ज्ञानका प्रति--
पाशी अज्ञान है। पानिकता प्रतिपक्षी कषाय है। ऐसें कहा है। ऐसें तीसरा पुण्यपापाधिकार । ._ उगणीस गाथामे पूर्ण कीया है । यामें कलशरूप काव्य टीकाकारकृत तेरा हैं।
आगें चौथा अधिकार आस्त्रबका है । तहां प्रथम ही आत्रका स्वरूप कहा है। मिथ्यात्व, अविरत, योग, कषाय हैं ते जीव अजीवकरि दोय प्रकार हैं । ते कर्मबंधकू कारण हैं ऐसे कहा है। पीछे ज्ञानीकै तिनिका अभाव का है। आगे कह्या है, जो रागद्वेषमोहरूप जीवकै अज्ञानमय परिणाम हैं ते ही आस्त्रव हैं । आर्गे रागादिकविना जीवका भाव है ताका संभवना दिखाया है।। आगें ज्ञानीक द्रव्यभाव आस्त्रक्का अभाव दिखाया है। आर्गे शिष्यका प्रश्न है, जो ज्ञानी निरालव
कैसे ? ताका' उत्तर है, जैसें अज्ञानीकै अर ज्ञानीकै आस्त्रक्का सद्भाव अर असद्भाव है ताका ! ___ युक्तिकरि वर्णन है, तहां रागद्वेषामोह ही अज्ञानपरिणाम है, सो ही बंधका कारणरूप आलव . म है, सो ज्ञानीकै नाहीं है, यातें ज्ञानीकै कर्मबंध भी नाहीं है। ऐसा निश्चय करि अधिकार पूर्ण : 4 कीया है। ताकी गाथा सतरा है। याम टीकाकारकृत कलशरूप काव्य चारा हैं।
__ आगें पांचमा अधिकार संवरका है। तहां संवरका मूल उपाय भेदविज्ञान है। ताकी रीति + तीन गाथामें कही है । पीछे शिष्यका प्रश्न है, जो भेदविज्ञानही संवर कैसे होय ? ताका दृष्टांतजन पूर्वक उत्तर है। आगें भेदज्ञानतें शुद्धात्माकी प्राप्ति होय, तिसतें संवर होय है, ताका विधान कह्या ।
है। आगें संवर होनेका प्रकार तीन गाथामें कया है । आगें संवर होनेका अनुक्रम कह्या है गाथा
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