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卐 होय है, ताका उत्तर है। आगे कहा है, कर्मका कापणाका मूल अज्ञानहीं है, तातें अज्ञानका
अभाव होय, ज्ञान होय, तब कापणा नाहीं है। आगे कह्या है, जो व्यवहारी जीव पुद्गलकर्मका। कर्ता आत्माकू कहै है सो यह अज्ञान है। आगें कया है, जो आत्मा पुद्गलकर्मका कर्ता निमित्तनैमित्तिकभावकरि भी नाहीं है। आत्माके योग उपयोग हैं ते निमित्तनैमित्तिकभावकरि कर्ता हैं। अर' योग उपयोगका आत्मा कता है । आगे कहा है, जो अज्ञानी भी अपने अज्ञानभावका तो कर्ता है,卐 अर पुद्गलकर्मका तौ कर्ता निश्चयकरि नाहीं है, जाते परद्रव्यकै तौ परस्पर कर्तृ कर्मभाव निश्चयकरि.. नाहीं है ऐसे कया है। आगें कहा है, जो जीवकू परद्रव्यका कर्तृ पणाका हेतु देखि उपचारकरि, कहिये है, जो यह कार्य जीव कीया सो यह व्यवहारनयका वचन है । आगे कह्या है, जो मिथ्यात्वा-.. दिक तो सामान्य आस्रव अर विशेषभेद गुणस्थान ए बंधका कर्ता हैं, तातें निश्चयकरि इनिका। जीव कर्ता भोका नाहीं है।
आगें जीवके अर आस्रवनि के भेद दिखाया है, अभेद कहने में दूषण दिखाया है। आगें सांख्यः । मती पुरुषकू अर प्रकृतीकू अपरिणामी कहे हैं, ताका निषेध करि पुरुष तथा पुद्गल• परिणामी कहा है । आगें ज्ञानकरि तौ ज्ञानभाव ही निपजे है, अर अज्ञानकरि अज्ञानभाव ही निपजे है ऐसे कया है। आगें कहा है अज्ञानी जीव द्रव्यकर्म बंधनेकू निमित्त होय है। आगे कहा है, पुगलका
परिणाम तो जीवतें न्यारा है, अर जीवका परिणाम पुद्गलते न्यारा है। आगें शिष्यका प्रश्न है जो.. __ कर्म जीवविर्षे बद्धस्पृष्ट है की अबद्धस्पृष्ट है ? ताका उत्तर निश्चयव्यवहारनयकरि दीया है। आगें" 卐 कया है, जो नयनिका पक्षकरिरहित है, सो कतृ कर्मभावकरि रहित समयसार शुद्ध आत्मा है, 1- ऐसें कहिकरि कर्तृकर्म अधिकारकू पूर्ण किया है । गाथा छिहत्तरीमैं । अर या अधिकारमें टीका." कारकृत कलशरूप काव्य चोवन ५४ हैं।
आगें पुण्यपापका अधिकार है। तहां प्रथमही शुभाशुभकर्मका स्वभावका वर्णन है। पीछे दोऊही कर्मबंधके कारण कहे हैं । याहीतें दोऊ कर्मकू निषेष हैं । ताका दृष्टांत है, अर आगमकी 5