Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
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युग-युग जीओ हे युगावतार !
0 साध्वी श्री इन्द्रकुमारी [शास्त्र-विशारदा]
साधारण मानव समय और वातावरण से बनता है। कठिन से कठिनतम कार्य भी सरल हो जाते हैं और उनके विचार और आचार पर समय की मुद्रा अंकित होती समस्याओं के समाधान की नूतन दृष्टि प्राप्त हो जाती है। है । किन्तु कुछ महामहिम मानवों का निर्माण समय नहीं मैंने तो पण्डित प्रवर स्वर्गीय श्रेयस्कर मुनि जी से करता वे स्वयं समय का निर्माण करते हैं। वे भगीरथ बहुत कुछ सुना था उपाध्याय श्री के सम्बन्ध में। पर मैं की तरह समय की गंगा को नया मोड़ देते हैं। उपाध्याय सोच रही थी कि वे प्राचीन परम्परा के सन्त हैं। उनमें पुष्कर मुनि जी ऐसे ही असाधारण व्यक्ति हैं। वे युग के क्रान्तिपूर्ण विचारों की कल्पना भी नहीं कर सकती थी निर्माता हैं । उन्होंने युग का निर्माण किया है । जैसे पारस क्योंकि वे राजस्थान के उस प्रान्त में जन्मे और बड़े हुए पत्थर के सम्पर्क में आकर काला-कलूटा लोहा भी सोना जहाँ पर परम्परा और रूढ़िवाद का प्राधान्य है। किन्तु बन जाता है और वह अपनी चमक-दमक से जन-जन मुझे आश्चर्य हुआ उपाध्याय श्री जी के विमल विचारों को के मन को मुग्ध करता है।
सुनकर, वे शान्ति के साथ क्रान्ति चाहते हैं। उनका सूर्य की चमचमाती किरणों की तरह जो भी उनके मन्तव्य है कि आन्धी की तरह जो क्रान्ति आती है उसका सम्पर्क में आया वह चमक उठा । और दीन-हीन व्यक्ति जीवन क्षणिक है। मैंने अनेकों बार उनके मौलिक प्रवचन भी उनके सम्पर्क में आकर अपने में महानता का अनुभव सुने और मैं प्रवचनों से अत्यधिक प्रभावित हुई । मेरी करने लगा । उपाध्याय श्री का व्यक्तित्व भी ऐसा है कि हृदय की यह निर्मल भावना है किहताश और निराश व्यक्तियों में भी अभिनव चेतना का युग युग जीओ हे युगावतार हे युगाधार । संचार हो जाता है। आत्मा को नया विश्वास और नया तुमको पाकर मानवता का खिल उठा श्रृंगार । बल मिलता है । अन्तर में उजाला-सा भरने लगता है,
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सच्चे महापुरुष
0 महासती प्रभावती जी महाराज परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी स्वयं चन्दन के वृक्ष की भांति जहरीले भुजंगों से लिपटकर महाराज जैन जगत के ही नहीं, अपितु भारत के एक भी अपने सद्गुणों की अनन्त सौरभ से विश्व को सुगन्धित मनस्वी और मनीषी सन्त हैं । वे उन विमल-विभूतियों में से बनाया । हैं, जिन्होंने मानवता के त्राण के लिए जैन शासन की ज्योति उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना आकर्षक और लुभावना को प्रज्वलित करने के लिए अपने आपको सर्वात्मना है उससे भी अधिक तेजस्वी है उनका आन्तरिक व्यक्तित्व, समर्पित कर दिया । स्वयं शिव-शंकर की तरह जहर की जिसमें हृदय की उदारता, चिन्तन की निर्मलता और चूंट को पीकर संसार को अमृत बाँटा, स्वयं शूलों पर प्रवृत्ति की शालीनता है। प्रथम दर्शन में ही मैं आपके चलकर दूसरों के मार्ग में सुगन्धित फूल बिछाये, स्वयं सर्च- सद्गुणों के प्रति आकर्षित हुई। सद्गुरुणी जी श्री सोहन लाइट की तरह जलकर दूसरों का पथ-प्रदर्शन किया। कुंवर जी महाराज से आपश्री के सम्बन्ध में बहुत कुछ सुना
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