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घट का कार्य ही दिखाई देता है । अत: उन्हें घट शब्द से संबोधित नहीं किया जा सकता । नाम, स्थापनादिरूप घटों को वास्तविक मानने वाला ऋजुसूत्रनय प्रत्यक्ष का विरोधी है। घट का आकार व कार्य न होने से जैसे पट घट नहीं कहलाता वैसे नामादि घट भी घट नहीं कहलाते, पर " ऋजुसूत्रनय” उन्हें घटरूप मानता है अतः वह प्रत्यक्ष विरोधी है
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द्वार १२४
तथा शब्दनय लिंग व वचन के भेद से वस्तु में भेद मानता है । अतः तटः, तटी, तटम् का लिंगभेद के कारण तथा गुरु, गुरू, गुरवः का वचन भेद के कारण वाच्यार्थ भिन्न-भिन्न है । जो शब्द परस्पर अर्थ का अनुगमन नहीं करते वे भिन्नार्थक हैं, जैसे घट, पट आदि शब्द । लिंग व वचन भेद से भिन्न शब्द भी परस्पर भिन्नार्थक है | इन्द्र, शक्र, पुरन्दरादि शब्द अभिन्न लिंग वचनवाले होने से परस्पर समानार्थक (एकार्थक हैं।
६. समभिरूढ़नय — शब्द की प्रवृत्ति में केवल व्युत्पत्तिनिमित्त को कारण मानने वाला नय समभिरूढ़ है । इस नय का मन्तव्य है कि यदि लिंगभेद व वचन भेद से शब्द के अर्थ में भेद होता है तो शब्दभेद से भी अर्थ में भेद होना चाहिये। जैसे, राजा, नृप, भूपति, घट, कुट, कुंभ आदि पर्याय शब्दों का भी भिन्न ही अर्थ होना चाहिये क्योंकि सभी की व्युत्पत्ति भिन्न है । यथा जलाहरण, जलधारण आदि विशिष्ट चेष्टा (क्रिया) वस्तुत: घट शब्द का वाच्यार्थ है । घट पदार्थ में घट शब्द की प्रवृत्ति औपचारिक है । 'कुट' शब्द 'कुट कौटिल्ये' धातु से बना है। पृथु, बुध्न, उदर आदि आकार की कुटिलता उसका वाच्यार्थ है । कुटिलता वाले पदार्थ में उसका प्रयोग औपचारिक है। वैसे कु = पृथ्वी, उस पर रहे हुए को उंभ = भरना कुंभ शब्द का वाच्यार्थ है । यहाँ 'उभ, उंभ पूरणे' धातु है । 'कु' शब्द उपपद रखने से 'कुंभ' बनता है । घट पदार्थ में कुंभशब्द का प्रयोग लाक्षणिक है, वास्तविक नहीं। इस प्रकार यह नय पर्यायवाची शब्दों के अर्थ को व्युत्पत्ति के भेद से भिन्न मानता है। उसका मानना है कि एक शब्द से बोध्य द्रव्य अथवा पर्यायरूप वस्तु दूसरे शब्द से बोध्य नहीं हो सकती । पट से बोध्य अर्थ कभी भी घट शब्द से बोध्य नहीं हो सकता क्योंकि घट व पट दोनों पदार्थ भिन्न-भिन्न हैं । यदि कोई भी पदार्थ किसी भी शब्द से बोध्य हो जाये तो सभी वस्तुएँ एकरूप हो जायेंगी अर्थात् घटपट सभी एक हो जायेंगे और ऐसी स्थिति में लोकप्रसिद्ध निश्चित पदार्थ विषयक प्रवृत्ति या निवृत्तिरूप व्यवहार ही विनष्ट हो जायेगा । अतः यह मानना होगा कि घट शब्द से वाच्य अर्थ कुट शब्द के वाच्यं अर्थ से भिन्न है अतः 'कुट शब्द' घट शब्द के वाच्य अर्थ का बोधक नहीं हो सकता। इसलिये पर्यायवाची शब्द के अर्थ परस्पर भिन्न ही होते हैं यह सिद्ध हुआ । यथा - जिन शब्दों का व्युत्पत्तिनिमित्त भिन्न-भिन्न है, उन शब्दों का अर्थ भी भिन्न ही होता है जैसे, घट, पट, शक्कर आदि शब्द । पर्यायशब्दों का भी व्युत्पत्तिनिमित्त भिन्न हैं अत: वे भी परस्पर भिन्नार्थक ही हैं । अतः जो नय पर्यायशब्दों को एकार्थक मानता है वह अयुक्त है। तर्कशून्य वस्तु को मानने से तो अतिव्याप्ति होगी । यथा — दूर देश में रहे हुए, प्रकाश की मंदता के कारण एकरूप दिखाई देने वाले नीम, कदंब, पीपल, कपित्थ आदि के पेड़ एकजाति के ही माने जायेंगे। परन्तु अनुभव विरुद्ध होने से ऐसा माना नहीं जाता है, वैसे ही पर्यायवाची शब्दों को भी एकार्थक नहीं माना जाता ।
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