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इस प्रकार भले ही पूज्यपाद ने चातुर्याम जैसे पद का प्रयोग न किया हो, फिर भी परोक्षतः उनका तात्पर्य वही है, जिसका समर्थन उत्तराध्ययनादि से होता है।
दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों मान्यताओं में यह एक तथ्य सामान्य है कि उनके साहित्य में यह उल्लेख नहीं मिलता कि तीर्थंकर ऋषभ द्वारा प्रतिपादित पंचयाम को पार्श्व ने अथवा उनके पूर्ववर्ती तीर्थंकरों ने संक्षिप्त कर उसे चातुर्याम के रूप में प्रतिपादित किया और महावीर ने पुनः वर्गीकरण कर विस्तार देकर उसे पंचयाम कहा। मूलाचार (बट्टकेर) के सन्दर्भ-संकेत
तीर्थकर महावीर की पाँच शिक्षाओं अथवा पॉच महाव्रतों के प्रचलन का स्पष्टीकरण बट्टकेर कृत मूलाचार में मिलता है, जिसके अनुसार मध्य के 22 तीर्थंकरों (अर्थात् अजित से नेमि तक) ने सामायिक की शिक्षा प्रदान की। इस प्रसंग में भी दो शिक्षाओं (चातुर्याम एवं पंचयाम) का कारण प्रायः वही दिया गया है, जो उनकी भिन्नता के कारणों को समझाने के लिए इन्द्रभूति ने केशी को दिया था। तदनुसार चूँकि प्रथम ऋषभ तीर्थंकर के काल में ऋजुजड़-मनुष्य कठिनाई से शुद्ध भाव ग्रहण करते हैं और अन्तिम तीर्थकर महावीर के काल में वक्रजड़-मनुष्य को कठिनाई से उचित मार्ग पर लाया जा सकता है। चूंकि मनुष्य प्रारम्भ और अन्त में कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य के भेद को नहीं समझ पाते, अतः उन्हें 5 महाव्रतों की शिक्षा प्रदान की गई क्योंकि वर्गीकृत पद्धति से इनका समझाना, विश्लेषण करना एवं समझना अपेक्षाकृत सरल है।
उक्त तथ्य के समर्थन में मूलाचार की वे गाथाएँ विशेष महत्त्वपूर्ण हैं, जिनके अनुसार समस्त मानव-कर्मों से विरति का पालन ‘सामायिक' है तथा उस विरति का वर्गों में विभाजन कर उनका पालन करना छेदोपस्थापना है। इस छेदोपस्थापना को ही पंचमहाव्रतों की संज्ञा प्रदान की गई है। यथा
विरदो सव्व सावज्जं तिगुत्तो पिहिदिदिओ। जो सामाइयं णामं संजमट्ठाणमुत्तमं ।। -मूलाचार 7/23, वावीसं तिथ्थयरा सामायिय संजमं उवदिसंति। छेदुवट्ठावणियं पुण भयवं उसहो य वीरो य।। -मूलाचार 7/36 आचक्खिदु विभजिदं विण्णादुं चावि सुहदरं होदि। एदेण कारणेण दु पंच महव्वदा पण्णत्ता।। -मूलाचार 7/37
देवनन्दि-पूज्यपाद ने भी इसके समर्थन में स्पष्ट घोषित किया है कि"सर्वसावध निवृत्तिलक्षणसामायिकापेक्षया एकं व्रतं तदेव छेदोपस्थापनापेक्षया पंचविधमिहोच्यते।
अर्थात्-जिसका लक्षण सर्वसावद्य (कर्मों) से निवृत्ति है, उस एक व्रत रूप सामायिक की अपेक्षा से उसे ही यहाँ छेदोपस्थापनारूप पाँच प्रकार का कहा गया है।
उक्त कथन चूँकि आचार्य पूज्यपाद ने पाँच महाव्रतों के प्रसंग में किया है, अतः उनका यहाँ पाँच प्रकार से तात्पर्य पाँच महाव्रतों से ही रहा है।
1. मूलाचार-गाथा 7/23-39 2. मूलाचार (पं. जिनदास पार्श्वनाथ फडकुले द्वारा सम्पा.) गाथा 7-39
18 :: पासणाहचरिउ