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પાકિસ્તાનનાં જૈન મંદિરો
आशीर्वचन
पंजाबकेसरी आ.भ. श्रीमद् विजयवल्लभ सूरि समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आ.भ. श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा.
मानव जीवन की सार्थकता स्व के वर्तुल को पार कर, पर के लिए जीने में है। जब भी व्यष्टि से समष्टि की ओर व्यक्ति की प्रवृत्ति होती है और उसके कार्य और विचारधारा 'सर्वजनहिताय व सर्वजनसुखाय' होते हैं तभी वह अन्तस के आकर्षण का केन्द्र बनता है। उसका व्यक्तित्व, मानसिक चिन्तन व बौद्धिक स्तर की अल्पनाएँ मानस को आन्दोलित करती हुई सुषुप्त भावनाओं को जागृत करती हैं, जागृत ही नहीं करतीं, अतीत की सहस्र स्मृतियों के उजास से आक्रान्त कर देती हैं।
'वीरान विरासतें' पुस्तक के प्रत्येक कथानक को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे हम पाकिस्तान जाकर प्रत्यक्ष जिनालयों के दर्शन कर रहे हों । मैं अपने जीवन में इतना सजीव चित्रण कम ही पढ़ा है। सच, मन रोमांचित हो जाता है व कहीं-कहीं आँखें भीग जाती हैं।
अभ्युदय के अग्रदूत, पंजाबदेशोद्धारक, न्यायाम्भोनिधि गुरुवर आत्म, युगद्रष्टा, समयज्ञ, पंजाबकेसरी गुरुवर वल्लभ की सुदेव, सुगुरु व सुधर्म की सच्ची साधना, शासन सेवा का समग्र समर्पण एवं तूफानों में निर्भीक होकर चलने की अमिट चाहत की अमर कहानी ये वीरान विरासतें कह रही हैं।
साहित्यकार व लेखक तथा जैन इतिहासमर्मज्ञ श्री महेन्द्रकुमार जी मस्त द्वारा रचित पुस्तक 'वीरान विरासतें' अविभाजित भारत के जिनमंदिर, स्थानक व दादावाड़ी का प्रत्यक्ष वर्णन है । मैं जिनशासन व जैन साहित्य जगत् की अविस्मरणीय सेवा के लिए श्री मस्तजी तथा मूल पुस्तक 'उजड़े दरां दे दर्शन' के लेखक जनाब इक़बाल क़ैसर, पुस्तक के प्रकाशन सौजन्य के लिए श्री आत्मवल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि, दिल्ली तथा श्रेष्ठ प्रकाशन हेतु बालसखा श्री राघवजी को अनेकशः शुभकामनाएँ देता हूँ।
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- विजय नित्यानंद सूरि
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