________________ ज्ञानप्रभाकर, गोड़वाड़भूषण आचार्य श्रीमद् विजय जयानन्द सूरीश्वरजी म.सा. भारत-पाक विभाजन से पाकिस्तान में विस्तृत विकसित जैन धर्म संस्कृति व स्थापत्यकला को बहुत अधिक हानि पहुँची। लाहौर, मुलतान, सियालकोट, गुजरांवाला आदि नगरों में निर्मित जिनालय, दादावाड़ी व स्थानक अब इतिहास व पुरातत्त्व विभाग की धरोहर हैं। विविध विद्वानों तथा यात्रियों ने समय-समय पर अपने ग्रंथों में, लेखों में उन सभी धर्मस्थलों का वर्णन किया है जो पाकिस्तान में प्रतिष्ठित थे। प्रस्तुत 'वीरान विरासतें' पुस्तक एक जीती जागती तस्वीर पेश करती है। समस्त घटनाक्रम आँखों के सामने चलता हुआ सा लगता है। हमारे आराध्य गुरु आत्म और गुरु वल्लभ की अमर निशानियाँ साकार हो उठती हैं। पुस्तक के मूल लेखक जनाब इक़बाल कैसर तथा हिन्दी में उसका अनुवाद कर सम्पादन करने वाले श्री महेन्द्रकुमार जी मस्त जैन जगत् के साहित्यकार, लेखक व इतिहासविद् हैं। श्री मस्त जी का प्रयास सफल व सराहनीय है। जैन समाज ऐसी अनुपम कृति को कभी विस्मृत नहीं करेगा। -विजय जयानन्द सूरि 190789383814992 // Rs300