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પાકિસ્તાનનાં જૈન મંદિરો
चन्द अल्फ़ाज़
दिल से
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक धरोहरों की दुर्दशा और सुरक्षा सम्बन्धी एक प्रोग्राम के सिलसिले में पी. टी.वी. के प्रोड्यूसर जनाब अज़हर फ़रीद के साथ मुझे कराची तक जाना पड़ा। तभी कसूर का जैन मंदिर भी देखा तथा पी. टी.वी. की उस रिकॉर्डिंग के बाद कसूर वाले मेरे लेख से इस किताब की शुरूआत हुई।
इन बहुमूल्य ऐतिहासिक धरोहरों पर काम करते हुए कई ऐसी सच्चाइयाँ भी सामने आईं कि 1947 में बँटवारे के समय, एकाध जगह को छोड़ कर, पूरे पाकिस्तान में कोई भी धार्मिक स्थान कट्टरता का निशाना नहीं बना था। भारत से आये शरणार्थियों ने इनमें आश्रय लिया तथा कुछ में स्कूल बन गए। मगर उनके मूल स्वरूप को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया गया। 1965 और 1971 की लड़ाइयों में भी हिन्दू, जैनी, वाल्मिकी मंदिरों या सिख गुरुद्वारों को किसी ने कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। हाँ 'समय' के हाथों जरूर कुछ जीर्णता या पुरानापन आए। आम लोगों ने इन्हें अमानत और धरोहर ही समझा व इनकी संभाल करते रहे। देश और मानवता की इस ऐतिहासिक पूँजी को जो नुकसान हुआ वह 1992 में तब हुआ, जब बाबरी मस्जिद को ढहाया गया। वह महती क्षति कभी पूरी नहीं हो सकती ।
बाबरी मस्जिद की घटना के जवाब में हुई बरबादी का मैं गवाह हूँ। मैं बदला लेना चाहता था, उनसे, जिन्होंने मेरे वतन की ऐतिहासिक संपत्तियों के साथ इतना बड़ा ज़ुल्म किया। एक लेखक होने के नाते, मैंने बाबरी मस्जिद और पाकिस्तान में ढहाए गए मंदिरों का बदला इस तरह लिया कि पाकिस्तान में अत्यंत ही थोड़ी गिनती के अल्पसंख्यक यानी जैनियों के पवित्र स्थानों को अपनी पुस्तक में संभालने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा हूँ। भारत और पाकिस्तान, दोनों तरफ खुदा के घरों को तोड़े जाने के अज़ीम गुनाहों का शायद इससे कुछ अजाला हो सके।
सबसे पहले दो महान हस्तियों हारून खालिद और उनकी धर्मपत्नी अन्एम हारून का ताज़िंदगी आभारी हूँ। इन दोनों का सहयोग बयान करने के लिए शब्द नाकाफी हैं।
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भारत में आदरणीय पुरुषोत्तम जैन व श्री रविन्द्र जैन ( मालेरकोटला ) का भी बहुत ऋणी हूँ। पंचकूला के श्री महेन्द्रकुमार जैन 'मस्त' इतिहास के गंभीर और गहरे जानकार हैं। अप शारीरिक जीवनकाल में इन सभी के चरण छूने की मेरी हार्दिक भावना है।
शाहमुखी (उर्दू लिपि में पंजाबी) में लिखी मेरी इस किताब को 'पाकिस्तान पंजाबी अदबी बोर्ड' ने छपाया है। उनका भी मैं आभारी हूँ।
अपनी खोजकारी के दौरान बहुत से इलाकों में अनेक सज्जनों ने सहायता बख्शी । मैं शुक्रगुजार हूँ उन सभी का ।
लाहौर व कसूर के दोस्तों, तथा नामवर फोटोग्राफर नदीम खादर, पी. टी.वी. के कैमरामेन, प्रोड्यूसर साहिब, जनाब फैज़ान नक़वी चैनल एफ. एम. 95, सूबा सिंध में सिंधी भाषा के विद्वान श्री जरवार का भी अहसानमंद हूँ ।
अंत में अपने बच्चे अली रज़ा, उसकी धर्मपत्नी सोबिया- दोनों ने यह काम सरअंजाम देने में मेरा हर तरह ख्याल रखा। उनका भी बहुत शुक्रिया ।
इक़बाल कैसर
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