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नृत्याध्यायः
भी ज्ञात होता है कि उसकी इस सर्वांगीणता के कारण लोकदृष्टि और शास्त्रदृष्टि, दोनों प्रकार से उसको असाधारण ख्याति प्राप्त हुई।
प्राभार महाराज अशोकमल्ल विरचित नृत्याध्याय को सर्व प्रथम प्रकाश में लाने का श्रेय महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ोदा को है। श्री बी० जे० सन्देसर के प्रधान सम्पादकत्व और सुश्री डॉ. प्रियबाला शाह के सम्पादकत्व में यह ग्रन्थ गायकवाड़ ओरिएण्टल सीरीज संख्या १४१ में १९६३ ई० को प्रकाशित हुआ था। इस ग्रन्थ की मूल हस्तलिखित प्रति ओरिएण्टल इंस्टिट्यूट, बड़ोदा के हस्तलेख-संग्रह में सुरक्षित थी। इस हस्तलेख को महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ोदा ने अपने संगीत तथा नाट्य विषयक ग्रन्थों की सम्पादन-प्रकाशन-योजना में सम्मिलित कर उसका सम्पादन तथा प्रकाशन कराया। संगीत नाटक अकादेमी, नयी दिल्ली द्वारा प्रदत्त वित्तीय सहायता में उसका सम्पादन तथा प्रकाशन हुआ।
इस प्रकार यह ग्रन्थ ओरिएण्टल इंस्टिट्यूट, बड़ोदा, महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ोदा और संगीत नाटक अकादेमी, नयी दिल्ली, इन तीन संस्थानों से सम्बद्ध है। मुझे यह ज्ञापित करते प्रसन्नता हो रही है कि ओरिएण्टल इंस्टिटयूट, बड़ोदा के निदेशक एवं नत्याध्याय के प्रधान सम्पादक श्री बी० जे० सन्देसर, ( B. J. Sindesara ), महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ोदा के रजिस्ट्रार श्री के० ए० अमीन (K. A. Amin) और संगीत नाटक अकादेमी, नयी दिल्ली के सचिव डॉ.सुरेश अवस्थी ने मेरे निवेदन पर इस महत्वपूर्ण एवं उपयोगी ग्रन्थ को हिन्दी अनुवाद सहित प्रस्तुत करने . की स्वीकृति प्रदान की। इस औदार्य एवं सहयोग के लिए मैं उक्त तीनों संस्थानों एवं सम्बन्धित विद्वान् महानुभावों के प्रति अपनी सादर कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ।
संस्कृत साहित्य के इस ग्रन्थरत्न का यह सचित्र हिन्दी संस्करण संभवतः प्रकाश में न आया होता, यदि शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा इसके मुद्रण आदि के लिए मुझे आँशिक वित्तीय सहायता प्राप्त न हुई होती। हिन्दी साहित्य में नाट्य-विषयक लक्षण ग्रन्थों का प्रायः अभाव ही है । इस दृष्टि से विभिन्न भारतीय . भाषाओं के विशिष्ट ग्रन्थों को अनुवाद तथा रूपान्तर द्वारा अन्य भाषाओं में लाने तथा उन्हें सर्व सुलभ बनाने के उद्देश्यसे भारत सरकार ने अपनी विशेष योजना के अन्तर्गत इस ग्रन्थ का हिन्दी संस्करण प्रकाशित कराया है । एतदर्थ भारत सरकार के प्रति मैं अपना सादर आभार प्रकट करता हूँ।
इस प्रन्थ के निर्माण, मुद्रण तथा सज्जा आदि में मुझे लीडर प्रेस के व्यवस्थापक श्री बालादत्त पाण्डेय और आचार्य तारणीश झा से जो सहयोग प्राप्त हुआ है तदर्थ उनके प्रति भी मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ।
विभिन्न विश्वविद्यालयों की स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं में नाटयकला (Dramaturgy) विषय के अध्ययन के लिए हिन्दी के माध्यम से पाठ्य-सामग्री का जो अभाव बना हुआ है, मुझे विश्वास है कि इस उपयोगी ग्रन्थ के प्रकाशित हो जाने से उसकी पूर्ति में सहायता होगी और उसके द्वारा इस विषय के छात्रों तथा अध्येताओं का बहुत-कुछ लाभ होगा।
--वाचस्पति गैरोला
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