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नत्याध्यायः
अत्यन्त अस्पष्ट भी हो गये हैं। प्रस्तुत संस्करण में इन त्रुटियों को परिमार्जित करने का यथा सम्भव प्रयत्न किया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि वह नाट्यशास्त्र-विषयक किसी विशाल ग्रन्थ का एक अंश है; क्योंकि उसके नत्याध्याय नाम से ही ज्ञात होता है कि उसमें नृत्य-विषयक अंग-उपांगों का ही समावेश है। यदि यह उपलब्ध रूप किसी बृहद् ग्रन्थ का एक अध्याय या अंश मात्र है तो निश्चित ही अपने मूल रूप में वह आचार्य भरत के नाट्यशास्त्र से भी विशाल रहा होगा।
नत्याध्याय की उपलब्ध सामग्री के आधार पर उसे पन्द्रह प्रकरणों में विभाजित किया गया है। अधिकतर प्रकरणों का उसमें उल्लेख भी हुआ है; किन्तु जिनका उल्लेख नहीं हुआ है, विषय-सामग्री के आधार पर उनको पृथक कर उनका नामोल्लेख कर दिया गया है । इसी प्रकार प्रस्तुत संस्करण में विभिन्न प्रकरणों की सुव्यवस्था के साथ-साथ उसके शीर्षकों तथा उपशीर्षकों का भी समुचित रीति से यथास्थान निर्धारण किया गया है । गायकवाड़ ओरिएण्टल ग्रन्थमाला के संस्करण में मूल हस्तलेख के आधार पर श्लोक-संख्या का उल्लेख किया गया है; किन्तु उसमें भी अव्यवस्था देखने को मिलती है, जो कि सम्भवत: लिपिकार की त्रुटि हो सकती है । इस अव्यवस्था के निराकरण के लिए प्रस्तुत संस्करण में अनुष्टुप् छन्द के आधार पर साद्यन्त रोमन अंकों की संख्या दे दी गयी है।
अध्येताओं की सुविधा के लिए इस संस्करण में १०८ नृत्तकरणों की रेखाकृतियाँ भी प्रस्तुत की गयी हैं। अभिनय विषय में अभिरुचि रखने वाले अध्येताओं एवं छात्र-छात्राओं को नृत्तकरणों की व्यावहारिक जानकारी देने में इन रेखाकृतियों की उपयोगिता स्वयं सिद्ध है । जहाँ तक पुस्तक की सज्जा एवं कलात्मक अभिरुचि का सम्बन्ध है, उसको प्रत्येक दृष्टि से भव्य तथा आकर्षक बनाने का यथा संभव पूर्ण प्रयत्न किया गया है।
पूर्वाचार्य और उनके मतों का उल्लेख अशोकमल्ल ने अपने ग्रन्थ में नाटयशास्त्रीय परम्परा के कुछ आचार्यों के नामों का स्पष्ट उल्लेख किया है। उदाहरण के लिए उन्होंने यत्र-तत्र मुनि ( ३४४, ३९६, ४१८, ४३०, ८३४, ८६७, ८६८, ८८१, १४२१ तथा १४३९ आदि) या भरत मुनि (५६०, ७०५, ८७५ आदि) के मत का उल्लेख करते हुए उनका नाम उद्धत किया है। इसी प्रकार दो स्थलों पर तण्डु ( ७८३) और वायुसून (७१४) का उल्लेख किया है। नाटय-संगीत की परम्परा में आचार्य कोहल का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है। अशोकमल्ल के समक्ष आचार्य कोहल का कोई लक्षण ग्रन्थ विद्यमान था, जिसके आधार पर उन्होंने अपने मत की पुष्टि के लिए उनका तीन बार उल्लेख ( ५१७, ७२२ तथा १०८२) किया है। इसी प्रकार आचार्य कीर्तिधर और आचार्य अभिनवगुप्त का नाम-निर्देश किया गया है । कीर्तिधर के नाम को चार बार (२९३, २९७, ७२९ और १२४१) उद्धत किया गया है । नाटयशास्त्र और काव्यशास्त्र के प्रसिद्ध आचार्य अभिनवगुप्त को अशोकमल्ल ने भट्ट (६०१) तथा भट्टाभिनवगुप्त (९०८) के नाम से उद्धृत किया है।
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