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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/24 अस्पष्टता और असंगति से बचने के लिए आचरण सम्बंधी समस्याओं पर प्रथम श्रेणी की दार्शनिक बुद्धि का ध्यान केंद्रित होना आवश्यक है। सर्वप्रथम हम सुकरात में आचरण के प्रति सर्वोपरी रूचि तथा ज्ञान की एक ऐसी उत्कट अभिलाषा का अपेक्षित समन्वय देखते हैं, जो तात्त्विक चिंतन के परिणामों के प्रति गहन असंतोष तथा भौतिक विश्व के रहस्यों को जान लेने की सम्भावना के प्रति अविश्वास के कारण उन भौतिक एवं आधिभौतिक (तात्त्विक) गवेषणाओं से विमुख हो चुकी थी। जिन्होंने उसके पूर्ववर्ती विचारकों का ध्यान अपनी ओर बँटा लिया था। सुकरात के अनुसार इन पूर्ववर्ती विचारकों के सिद्धांत स्पष्ट रूप से अतर्कसंगत तथा परस्पर इतने विरोधी थे कि वे पागल व्यक्ति के प्रलाप के समान लगते थे। पूर्ववर्ती समस्त परम्परावादी दार्शनिकों के प्रति एक ऐसा निषेधात्मक दृष्टिकोण गार्गीअस के अतिरंजित संदेहवाद की अभिव्यक्ति में भी पाया जाता है। गार्गीअस की मान्यता यह थी कि वस्तुओं के उस तात्त्विक स्वरूप का, जिसकी दार्शनिक खोज करते है, कोई अस्तित्त्व ही नहीं है और न उसे किसी प्रकार से जाना जा सकता है यदि उस तात्त्विक स्वरूप को जाना भी जा सके, तो भी उसकी शब्दाभिव्यक्ति सम्भव नहीं है। इसी प्रकार पाइथागोरस ने भी अपनी प्रमुख स्थापना में यह बताया था कि क्या है और क्या नहीं है इसका एकमात्र प्रमाण मानवीय एन्द्रिय बोध है। सुकरात के विचारों में ऐसे दृष्टिकोण को उसकी उस सहज धर्मनिष्ठा के आधार पर अधिक समर्थन मिला है। सुकरात उन वस्तुओं की खोज के प्रति अनिच्छुक थे, जिनको ज्ञान देवताओं ने अपने तक ही सीमित रख छोड़ा है। दूसरी ओर वे मानवीय आचरण का नियंत्रण मानवीय बुद्धि पर छोड़ देते हैं। (सिवाय उन कठिन अवसरों के, जिन्हें शकुन या देव वाणी की कृपा पर छोड़ दिया जाता था।) सुकरात ने इसीलिए अपने प्रयासों को मानवीय बुद्धि पर केंद्रित किया। सोफिस्ट विचारकों का युग (450 ई.पू. - 400 ई.पू.)
यद्यपि शुभाचरण के बुद्धिसंगत सिद्धांत का मार्ग मूलतः सुकरात का नहीं, तथापि सदाचरण के लिए ज्ञान की अनिवार्यता की उनकी धारणा उच्च कोटि की थी। अधिकांश स्वतंत्र चिंतकों के विचार भी अपने युग से निर्धारित होते हैं। हम सुकरात के प्रयासों को भी आचरण की कला को सिखाने के व्यावसायिक प्रशिक्षण से अलग नहीं कर सकते हैं। यह प्रशिक्षण व्यक्तियों के एक ऐसे वर्ग के द्वारा किया जाता था जिन्हें सोफिस्ट कहा जाता है। सोफिस्ट का उदय ग्रीक सभ्यता के उस युग की सबसे अधिक प्रभावशाली घटना थी। मानवीय श्रेष्ठताओं एवं सद्गुणों के इन