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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अधिक्षिप्त शब्द | ५ मूल : अधिक्षिप्त: प्रणिहिते प्रेरिते भत्सिते त्रिषु ।
अभिष्यन्दोऽति वृद्धौ स्यास्रावे लोचनामये ॥ १७ ॥ - हिन्दी टीका-अधिक्षिप्त शब्द प्रणिहित (प्रेषित) एवं प्रेरित तथा भत्सित अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि यह शब्द विशेष्य निघ्न होने से पुरुष, स्त्री और नपुंसक इन सभी में प्रणिहित, प्रेरित और भत्सित शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। अभिष्पन्द शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. अतिवृद्धि (अत्यधिक), २. आस्राब (स्रवित होना), ३. लोचन (नेत्र) और ४. आमय (रोग)। इस प्रकार अधिक्षिप्त शब्द के तीन और अभिष्यन्द शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए। मूल : अधीरश्चञ्चले भीरौ त्रिषु विद्युति तु स्त्रियाम् ।
अध्वगः पथिके सूर्ये खेसरे च क्रमेलके ॥१८।। हिन्दी टीका - अधीर शब्द चंचल (चपल) और भीरु (डरपोक) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष, स्त्री और नपुंसक ये तीनों ही चंचल और भीरु हो सकते हैं। किन्तु विद्युत (बिजली) अर्थ में अधीर शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है क्योंकि विद्युत स्त्रीलिंग है इसलिए उसका विशेषणभूत अधीर शब्द भी विशेष्यनिघ्न होने से स्त्रीलिंग ही माना जाता है।
अध्वग शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. पथिक (राही, राहगीर), २. सूर्य, ३. खेसर (आकाश में चलने वाला) अथवा खेचर शब्द भी उसो अर्थ का वाचक है इसलिए खेचर भी पाठ हो सकता है । और ४. क्रमे लक (ऊँट) को भी अध्वग कहते हैं क्योंकि रेगिस्तान वगैरह में ऊंट अत्यन्त अधिक विचरता है जहाँ कि जल का भी मिलना कठिन होता है फिर भी ऊँट वहां भी चलने में समर्थ होता है इसलिए उस को भी अध्वग शब्द से लिया जाता है।
अध्वरः सावधाने स्याद् वसुभेदे सवे पुमान् ।
अध्वा संस्थान-समय-स्कन्ध-शास्त्रेषु वर्त्मनि ॥१६।। हिन्दी टीका-अध्वर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सावधान (सचेत), २. वस विशेष, ३. सव (याग) । अध्वन् शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं१. संस्थान (ठहरने का या रखने का स्थान), २. समय (काल), ३. स्कन्ध (कन्धा), ४. शास्त्र और ५. वर्त्म (रास्ता, मार्ग)। इस प्रकार अध्वर शब्द के तीन और अध्वन् शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए। मूल : अनो नपुंसकं जन्म-जनन्योः शकटेऽन्धसि ।
अनघो निर्मलेऽपापे मनोज्ञ वायलिंगभाक् ॥२०॥ हिन्दी टीका-अनस् शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. जन्म (उत्पत्ति), २. जननी (माता), ३. शकट (गाड़ी) और ४. अन्धस् (भात-ओदन)। अनघ शब्द वालिंगभाक् (विशेष्यनिधन होने से) त्रिलिंग माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. निर्मल (मलरहित-स्वच्छ), २. अपाप (पापरहित-निष्पाप) और ३. मनोज्ञ (रमणीय) । इस प्रकार अनस् शब्द के चार और अनघ शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। (न-अघः=अनघः) इस व्युत्पत्ति से अघ पाप को कहते हैं, उसका अभाव अनघ कहलाता है। मूल : अनंगं गगने चित्ते कामदेवे त्वसौ पुमान् ।
अनन्तो बलदेवे स्याच्चतुर्दशजिनेऽच्युते ॥२१॥
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