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कथाकोष प्रकरण और जिनेश्वर सूरि । विशिष्ट धर्माचार्य बनता है । उग्र व्रताचरणके प्रभावसे उसको विशिष्ट ज्ञानकी प्राप्ति होती है और वह अपने उस ज्ञानसे पूर्वभक्के वे अन्य मित्रजीव, कहां जन्म ले कर किस प्रकारका जीवन व्यतीत कर रहे हैं इसका वृत्तान्त ज्ञात करता है । फिर उन उन स्थानोंमें जा कर, उनको धर्मोपदेश द्वारा लौकिक जीवनकी निःसारता समझा कर, पारमार्थिक जीवनके पथपर चलने की अर्थात् संसार त्याग कर मुनिजीवनकी आराधना करनेकी प्रेरणा करता है । क्रमसे वे सब दीक्षित हो कर अपना आत्मकल्याण करते हैं और अन्तमें आयुष्यके पूर्ण होने पर निर्वाण प्राप्त करते हैं ।
जिसको उपलक्ष्य करके मूल कथासूत्र गुंथा गया है वह मगधका राजा सिंहराज भी, उन्हीं दस जीवोंमेंका, पहली कथाका मुख्य नायक, कौशांबीके विजयसेन राजाका जीव है और उसकी रानी लीलावती भी, कपट और चौरीके उदाहरणमें जिस वणिक्पुत्र वसुदेवके जन्मकी बात कही गई है, उसीका जीव है । पूर्वभवके मित्रभावको लक्ष्य कर, पूर्व जन्मका जयशासन मंत्रीका जीव समरसेन सूरि इनको भी प्रतिबोध करनेके लिये राजगृहमें आते हैं और इनकी जिज्ञासासे प्रेरित हो कर इस प्रकार अपने सब साथियोंके जन्म-जन्मान्तरोंकी कथा इनको सुना कर, संसारसे मुक्त होनेकी प्रेरणा करते हैं । सूरिके उपदेशसे प्रतिबुद्ध हो कर सिंहराज और रानी लीलावती भी दीक्षा ले लेते हैं और अन्तमें वे भी सबके साथ निर्वाणभाव प्राप्त करते हैं। .. इस प्रकार १० जीवोंके जन्म-जन्मांतरोंकी कथाजालसे इस 'महाकथा'की संकलना की गई है। • यों तो अन्यान्य जैन कथाओंमें जिस प्रकारकी सामान्य वस्तुशैली दृष्टिगोचर होती है वैसी ही शैली
और वैसा ही वस्तुनिरूपण इसमें भी है; परंतु विषयके खरूपचित्रणमें जिनेश्वर सूरिकी सिद्धहस्तता बहुत अच्छी मालूम देती है । यद्यपि हमारे सामने मूल रचना विद्यमान नहीं है इससे उसके कत्रित्व और वर्णन-विस्तारकी हमें ठीक कल्पना नहीं आ सकती, तथापि जिनरत्न सूरिके इस संक्षेप कथासारके पढ़नेसे इतना तो जरूर जाना जा सकता है कि मूल कथाके कई वर्णन तो बहुत ही सजीव और सरस होंगे। क्रोधी, मानी, कपटी, विषयासक्त और लोभी जीवोंके स्वभावोंके जो प्रासंगिक चित्र इसमें अंकित किये गये हैं वे बहुत कुछ स्वाभाविक और भावस्पर्शी हैं । उद्धतचरित्र राजकुमार, धनलोभी वणिक्पुत्र, विद्याजड ब्राह्मणसन्तान - इत्यादिकोंके विचारों और व्यवहारोंके कई जगह बहुत ही तादृश चित्र आलेखित किये गये हैं । राजाओं और राजपुत्रोंको लक्ष्य करके जो भिन्न भिन्न प्रकारकी राज नीतिका उपदेश दिया गया है वह भी बडा सुन्दर और शिक्षादायक है । यदि कहीं इस कथाकी मूल रचना प्राप्त हो जाय तो बह एक बडी महत्त्वकी निधिके मिलने जैसी आनन्दोत्पादक होगी।
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