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जिनेश्वरीय ग्रन्थोंका विशेष विवेचन - कथाकोश प्रकरण । राजकुमार उसके अभिप्रायको समझ कर अपने स्थान पर चला गया । वह सुन्दरी भी तोसलीके रूपसे मोहित हो कर और अपना हृदय खो कर बैठी रही । जब विकालवेला हुई तो उसकी सूहविया नामक दासीने आ कर उसको ब्यालू कराया और पुष्प-तांबूल आदि दे कर फिर वह अपने स्थान पर चली गई । सुन्दरी भी अपने कमरेके दरवाजेको बन्ध कर और झरूखेको खोल कर बिछानेमें बैठ गई। पहरभर रात्रिके जाने पर वह तोसली राजकुमार वहां आया और विद्युदुत्क्षिप्तकरण (बीजलीकी तरह लपक कर कहीं ऊपर चढ जानेकी कला ) द्वारा झरूखेमें चढ गया और चुपकेसे कमरेमें घुस कर अपने हाथोंसे सुन्दरीकी आंखें दबा लीं। उन दोनोंके बीचमें, फिर परस्पर स्नेहपूर्ण वार्ता-विनोद होता रहा और रति-विदग्ध राजकुमारके रति-विलाससे रंजित हो कर वह सुन्दरी उसके प्रति अत्यंत अनुरागवती हो गई । रात्रिके समाप्त होनेका समय आ जाने पर वह कुमार जैसे आया था वैसे ही पुनः अपने स्थान पर चला गया । सुन्दरी भी रतिक्रीडाके श्रमसे थकी हुई शय्यामें सूर्योदय होने तक सोई रही। सूह विया दासी समय पर दतवन-पानी ले कर आई तो उसने सुन्दरीको गहरी नींदमें सोई देखी । उसने मनमें सोचा जिसका पति परदेश गया हुआ है वैसी स्त्रीका इतने समय तक सोते रहना अच्छा नहीं है । वह चुपचाप वहीं बैठी रही ।
जब सुन्दरी बहुत देरके बात जगी और ऊठ कर बैठी हुई तो उसने पूछा- 'स्वामिनि, क्यों आज इतनी देर तक सोई रही?'
सुन्दरीने कहा- 'पतिके वियोगमें सारी रात नींद नहीं आई, अभी अभी सबेरा होनेके समय कुछ आंख मिली।'
दासीने पूछा- 'खामिनि, तेरे होठोंपर यह क्या हुआ है ?' सुन्दरी- 'शरदीके मारे फट गये हैं।' दासीने पूछा-'तेरी आंखोंमेंसे यह काजल कैसे गल रहा है ?' सुन्दरीने कहा-'पतिके वियोगमें रोना आ गया, इससे आंखें मलनी पडी।' दासीने पूछा- 'खामिनि, यह तेरे गालों पर, तोतेकी चांचसे लगे हुए जैसे क्षत काहेके हैं ?'
सुन्दरी बोली-'पतिके विरहमें उसकी उत्कट याद आ जानेसे अपने आपको जैसे वैसे आलिंगन करनेके कारण कुछ हो गया होगा।'
सूहवियाने कहा- 'मैं तेरे पास सोया करूंगी जिससे एक-दूसरेका आलिंगन किया करेंगे।' सुन्दरी बोली- 'छीः छीः, पतिव्रताके लिये यह अनुचित होता है।' दासीने पूछा- 'स्वामिनि, आज तेरा यह कबरीबन्ध बिखर कैसे गया ?'
सुन्दरीने कहा- 'बहिन, तूं बडी चालाक है; कैसे कैसे प्रश्न पूछ रही है ? । पगली, भर्ताके अभावमें शय्या तपी हुई रेतीके टिंबेके जैसे लगती है । उसमें सारी रात इधरसे-उधर उथल-पुथल करते रहने पर कबरीबन्ध कैसा संवारा हुआ रहेगा ? । ऐसे ऐसे प्रश्न करके क्या तूं श्वशुरकुलका क्षय तो नहीं देखना चाहती?'
सूह वियाने कहा- 'छीः छीः खामिनि, ऐसा मत समझ कि तेरे श्वशुरकुलका क्षय होगा, बल्कि इसकी तो परम उन्नति होगी।'
ऐसा कह कर सूहविया चली गई । सुन्दरीने भी दूसरी रातको राजकुमार तोसलीके आने पर उससे कहा- 'यदि मेरा कहना करो तो कहीं दूसरी जगह चले चलो । क्यों कि जब मेरे श्वशुरको यह सब
क० प्र० ११
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