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कथाकोष प्रकरण और जिनेश्वर सूरि । तब उस डोड्डेने कहा- 'साधुओंने मुझ पर कार्मण प्रयोग किया है इसलिये उनको अटकमें रखा था । धनदेव सेठने एक लाख दीनारोंकी हमारी थापण (धरोहर) रख छोडी है।'
तब राजाने कहा- 'उन्होंने जो कार्मण किया है तो मुझसे आ कर कहना था । मैं उसका दण्ड देता । लेकिन तुम शिक्षा करनेवाले कौन ?।
और सेठने कहा- 'तुम अपनी थापण (धरोहर ) उठा ले जाओ। तो डोडेने कहा- 'हमारे पास लाख दीनार नहीं है।
फिर राजाने कहा- 'यदि यह सही निकला कि उन साधुओंने यंत्रादि (कार्मण) कर्म किया है तो मैं उनके हाथ कटवा डालूंगा, और यदि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है और तुमने असत्य बात बना कर कही है तो फिर तुम्हारी जीभ कटवाई जायगी । इस लिये अपनी 'शुद्धि' करके दिखाओ।'
ब्राह्मणोंने कहा- 'महाराज ! क्या ब्राह्मणोंके सन्मुख ऐसा उल्लाप करना उचित है ? शास्त्रकारका आदेश है कि -- "ब्राह्मण यदि सब पापोंसे लिप्त हो, तब भी उसको किसी तरह मारना न चाहिये । अपराधी ब्राह्मणको उसके सब धनके साथ, विना शारीरिक हानि पहुंचाये, राष्ट्रसे बहार कर देना चाहिये ।" - इत्यादि ।
सुन कर राजाने कहा- 'ब्राह्मण कहते किसको हैं ! जो जितेन्द्रिय हैं, क्षान्तिमान् हैं, श्रुतिपूर्ण कर्णवाले हैं, प्राणिहिंसासे निवृत्त हैं, और परिग्रहसे संकुचित रहते हैं वे ब्राह्मण हैं; और वे ही मनुष्योंके पूज्य समझे जाते हैं । अकार्यमें प्रवृत्त होनेवाला जातिमात्रसे ब्राह्मण, ब्राह्मण नहीं कहा जाता । इसलिये या तो 'शुद्धि' करो अथवा फिर देश छोड कर बहार चले जाओ। तुम्हारे लिये और कोई गति नहीं है । ___ इस बीचमें एक अन्य डोड्डेने कहा- 'महाराज ! यह तुम्हारा अन्याय है । ऐसा कहते हुए तुम्हारे सन्मुख ही मैं गलेमें फांसा खा कर लटक मरूंगा।' ___ सुन कर, भृकुटी चढाते हुए, राजाने अपने मनुष्योंको सूचना दी । उन्होंने एकसाथ सब ब्राह्मणोंको पकड लिया । राजाने कहा - 'तुम खयं क्यों मरोगे? - मैं ही तुम्हें मरवाऊंगा।'
तब ब्राह्मणोंने कहा- 'महाराज ! क्या इन अधम शूद्रोंके लिये ब्राह्मणोंके उपर इस प्रकार निर्दय होना उचित है ?
राजा- 'क्या सूतके डोरे (धागे) से [ यज्ञोपवीतके सूतको लक्ष्य कर यह कथन है ] तुम ब्राह्मण हो या क्रियासे ? यदि सूत्रमात्रसे ब्राह्मणत्व आ जाता है, तब तो अब्राह्मण कोई नहीं रहेगा । यदि क्रियासे ब्राह्मणत्व है, तो साधुओंकी हत्या करने में निरत और उन्मार्गमें प्रवृत्त ऐसे तुम्हारी क्रिया कौनसी है ? साधुओंकी हत्या करनेरूप क्रियासे तो ब्राह्मण बन नहीं सकते । इससे तो फिर डोंब और चंडाल आदि भी ब्राह्मण माने जाने चाहिये । यदि कहो कि होम-यागादि क्रियाके कारण ब्राह्मणत्व है, तब भी साधुओंको क्लेशित करनेवाले तुम ब्राह्मण नहीं हो।'
ब्राह्मणोंने (धनदेव सेठको उद्देश करके) कहा- 'अरे किराट ! तुझे ब्रह्महत्याका पाप लगेगा । इससे तेरा कहीं छुटकारा न होगा।'
राजा- 'मैंने तुमको अन्याय करनेवाले समझ कर पकडा है और बन्दी बनाया है, फिर इस किराटको क्यों शाप दे रहे हो ! यदि तुममें कुछ भी शक्ति है तो मुझसे कहो । अथवा नीतिसे वर्तो ।
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