Book Title: Kathakosha Prakarana
Author(s): Jineshwarsuri,
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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श्रीजिनेश्वरसूरिकृत-कथाकोशप्रकरणे
[१७ गाथा अस्थि अणंता जीवा जेहिं न पत्तो तसत्तपरिणामो । उप्पजंति चयंति य पुणो वि तत्थैव तत्थेव ॥ तत्तो य केइ जीवा पत्तेयसरीरिणो य एगिंदी । होउं ठंति असंखं कालं तत्थेव जायंता ॥ तत्तो चिय' उबट्टा बिय-तिय-चउरिदिएसु जायंति । पुणरुत्तं तत्थेव य कालं संखेजयं वरया ॥ संपुणिदियजोगे असण्णिणो केइ तत्थ जायंति । सन्नी वि कह वि होउं पावरया जंति नरएसु ॥ । अस्सन्नी खलु पढमं दोच्चं च सिरीसिवा तइय पक्खी । सीहा जंति चउस्थिं उरगा पुण पंचमि पुढवि । छटिं च इत्थियाओ मच्छा मणुया य सत्तमि पुढविं । अइपावपसत्तमणा वयंति एयासु पुढवीसु ॥ लहुतरपावा अन्ने रयणाइसु जंति के वि हलुयतरा । तिरियमणुयाइएसु य वयंति नियकिरियसारिच्छं । कह कह वि माणुसत्तं सुकुलुप्पत्ती निरामयसरीरं । लण वि पावरया पडंति अइदारुणे नरए । तत्तो तिरिक्खजोणी सुर-नर-तिरिएसु हिंडिउं बहुसो । एगिदिएसु जंती कालमणंतं तहिं वसिउं ॥ ॥ विगलिंदिय-पंचेंदिय-असण्णि-सण्णीसु हिंडिउं बहुसो । देस-कुल-जाइसुद्धं मणुयत्तं कह वि पावेंति ॥ लद्भूण वि तं जीवा विसयामिसमोहिया भणंतीह । नस्थि किर कोइ जीवो न पुण्णपावं न परलोगो ॥ अन्ने उ मुद्धलोयस्स वेरिया पण्णवेंति दुवियड्डा । भूमि-हिरण्णपयाणं दियाण सगं समप्पेइ ॥ उक्तं च तैः- दक्षिणाया द्विजस्थानं राजा तद्दायको यतः।
शूद्राधमे तु यदानं दातारं नरकं नयेत् ॥ परबाह-न मांसभक्षणे दोषो न मयेन च मैथुने ।
प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला ॥ अपरस्त्वाह - न स्त्री दुष्यति जारेण नाग्निर्दहनकर्मणा ।
___ नापो मूत्र-पुरीषाभ्यां न विप्रो वेदकर्मणा ॥ इय सपरवेरियाणं दुवियड्डाणं वसं गया जीवा । संसारसायरमणोरपारमुवयंति कम्महया ॥ ७ दुलहं ता जिणवयणं संसारसमुद्दतरणबोहित्थं । तत्थ सया जइयवं संसारदुहाण भीएण ॥
एवं पइदियहमागच्छइ पव्वाइया । करेइ धम्मदेसणं मणोरमा तओ जाया कवडोवासिया । अल्लियह निच्चं तदंतिए । अण्णया कहंतरमेगंतं च नाऊण भणियं पवाइयाए
चाई भोई सूरो रइबंधवियक्खणो य मियवेगो । पणइयणपूरियासो सव्वासु कलासु पत्तहो ।।
न रमइ जा संखनिवं नवजोव्वणरूवगव्विया महिला । किं तीए जीविएणं रूवेण व जोव्वणेणं वा ।। 9 भणियं मणोरमाए – 'हा हा मुद्धे ! मुहा पलवसि, न जुत्तमेयं ।
कुच्छियचिलीणमलसंकडेसु अंगेसु रइसुहमणज । सासयमणिमित्तमणोवमं च मुद्धे सुहं भणियं ॥ तं पुण जिणिंदवयणा पवन्ननिरवजसुद्धचारित्ता । तत्थ सया जइयवं जइ अत्थसि अक्खयसोक्खे ॥ जिणवयणभावियाणं न होंति धम्मस्स विग्यकारीणी । एवंविहवयणाई तहा वि नो भासियव्वाइं॥ कीस न याणसि मुद्धे! तुमाए नियसीलदूसणं भणियं । रइगुणवियड्डिमा हंदि तस्स तुमए कहं नाया ।। जइ परदाररओ सो तुम पि एयारिसी सया णूणं । ता साविग त्ति केण उ सासणखिंसावहा मुद्धे ! ॥ ता अलमिमिणा वइवित्थरेण मा एज्ज अम्ह गेहंमि । सा वि सरोसं गंतुं भणइ निवं सा अजोग ति ॥
4 A. अन्नो। 5A मिउवेगो। 6 B'जइ इच्छसि
1 B'चिय"नास्ति। ----2 B1 3 B को वि। सासयं सुक्खं।
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