Book Title: Kathakosha Prakarana
Author(s): Jineshwarsuri, 
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 362
________________ कथानककोशप्रकरणस्य मूलसूत्रपाठः। जं दव्वभावगाहगसुद्धं इह मोक्खसाहगं दाणं । इहलोगणिदाणाओ तं हणइ मूलदेवो व्व ॥ ११ ॥ भावं विणा वि दिंतो जईण इहलोइयं फलं लहइ । वेसालि-पुण्णसेट्टी-सुंदरि-साएयनयरंमि ॥ १२ ॥ दाणं विणा वि दिंतो भावेण देवलोगमजिणइ । वेसालि-जुण्णसेट्टी चंपाए मणोरहो नायं ॥ १३ ॥ अणुमन्नंति जईणं दिजंतं जे य अन्नलोगेणं । सुरलोगभायणं ते वि होंति हरिणो व्व कयपुण्णा ॥ १४ ॥ दाऊणं पि जईणं दाणं परिवडइ मंदबुद्धीओ। घय-वसहि-वत्थदाया नायाई एत्थ वत्थुमि ॥ १५ ॥ अणुगिण्हति कुचित्तो भावं नाऊण साहुणो विहिणा। जह सीहकेसराणं दाया रयणीए वरसड्ढो ॥ १६ ॥ जिणसासणावराहं गृहेउं सासणुण्णई कुज्जा। णायाइं इह सुभद्दा मणोरमा सेणिओ दत्तो ॥ १७ ॥ केइ पुण मंदभग्गा णियमइउप्पेक्खिए बहू दोसे। उब्भावेंति जईणं जय-देवड-दुद्द-दिटुंता ॥ १८॥ दोसे समणगणाणं अण्णेणुब्भाविए वि णिसुणेति । ते वि हु दुग्गइगमणा कोसिय कमला इहं णायं ॥ १९ ॥ साहूणं अवमाणं कीरंतं पाविएहिं ण सहति । आराहगा उ ते सासणस्स धणदेवसेट्टि व ॥ २०॥ अहिट्ठसमयसारा जिणवयणं अण्णहा वियारित्ता । धवलो व्व कुगइभायणमसइं जाइंति इह जीवा ॥ २१ ॥ उच्छाहिंति कयत्था गिहिणो वि हु जिणवरिंदभणियंमि । धम्ममि साहु-सावगजणं तु पज्जुण्णराया व ॥ २२ ॥ इसीसिमभिमुहं पि हु केई पाडेंति दीहसंसारे । मुणिचंदो व्व अपरिणयजणदेसणअविहिकरणा उ ॥ २३ ॥ 1 'जे ते वि कुगइगामी' इति पाठभेदः। 2 'साहूण जे वमाणं' इति पाठान्तरम् । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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