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१-अध्यात्म खण्ड भी प्रकार तत्काल सम्भव न होनेसे वे सब उस मनुष्य-लोकके बाहर स्थित तिर्यक्-लोक है। असंख्यात् विकल्प-निर्मित इस मध्यलोकको, मनुष्य-लोक और तिर्यक्-लोकके रूपमें द्विधा विभक्त करनेवाली यह असम्भवता ही, मनुष्यकी गतिको अवरुद्ध करनेवाली अवधि या मानुषोत्तर पर्वत है।
इसीप्रकार अधोलोक एवं ऊर्ध्वलोक भी चित्तगत इस विकल्पलोकमें देखे जा सकते हैं, परन्तु वाग्गौरव मात्र होनेसे उनका कथन करना यहाँ इष्ट नहीं है। आपके भीतर एक वैकल्पिक जगत बसा हुआ है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं है। न जाने ऐसे-ऐसे कितने जगत प्रतिक्षण चित्त-सागर में उन्मज्जित तथा निमज्जित होते रहते हैं । यही है आपका आभ्यान्तर-जगत जो बाहरकी अपेक्षा आपके अधिक निकट है, और इसलिये बाहरकी अपेक्षा अधिक सत्य है । इतना मात्र समझ लेना ही यहाँ पर्याप्त है ।
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