________________
८-हृदय कर लेती है, और दया दान सेवा आदिके रूप में अभिव्यक्त होती है। समान स्तरके व्यक्तियोंके प्रति किया गया दान समदत्ति कहलाता है, दुःखी जनोंके प्रति दयादत्ति, गरुजनोंके प्रति पात्रदत्ति अथवा भक्तिदत्ति और अपनी सन्तानके प्रति होनेपर वह सर्वदत्ति कहा जाता है। अधार्मिक, पापी अथवा विपरीत बुद्धिवाले व्यक्तियोंके प्राप्त होनेपर यह मैत्री हो उपेक्षा अथवा माध्यस्थता बन जाती है । इस प्रकार हृदय-जगतमें सर्वत्र जानना।
* भगवान महावीर ने कहा गादि उसकी होती है ।
जो अाज होता है सरल होता है । काई स्टकी । भाषा में बच्चे जैसा सरल। व्यक्ति बच्चे जैसा सरल होकर, बिना कुछ छिपाए अपने दोषों को। गुरु के समक्ष रखे यही आलोचना है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org