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१३. सत्पुरुषार्थ
१. हृदय परिवर्तन
आगे बढ़ना कहा गया। परन्तु आगे बढ़ना क्या ? पाँवसे आगे बढ़नेकी बात नहीं है, न ही अधिक धनवान बननेकी बात है। अधिक गुणवान् बननेकी बात है। गुण भी शारीरिक गुण नहीं, मानसिक गुण नहीं, वाचिक गुण नहीं, चैतसिक गुण नहीं, बौद्धिक गुण नहीं, हार्दिक गुणोंमें वृद्धि करनी है। __शरीरका वेष बदल लेना, शारीरिक तप करना, शरीर तथा इन्द्रियोंके विषयोंका त्याग कर देना शारीरिक गुण हैं हार्दिक नहीं। 'अधिकाधिक तप तथा त्याग करूं, अधिकाधिक शास्त्र ज्ञान प्राप्त करूँ', इस प्रकारका संकल्प करना मानसिक गुण है, हार्दिक नहीं। शास्त्रीय भाषामें बोलने लगना बड़ी-बड़ी सभाओंमें प्रवचन देना, जनरंजन करना वाचिक गुण है हार्दिक नहीं। शास्त्रीय बातोंका मनन चिन्तन करना, ध्यान करना चैतसिक गुण है हार्दिक नहीं । शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करना बौद्धिक गुण है हार्दिक नहीं।
हार्दिक गुण है प्रेम । मैत्री, प्रमोद, करुणा, माध्यस्थ्य, संवेग, वैराग्य, दया, विनय, भक्ति, वैयावृत्त्य, वात्सल्य, सहानुभूति, सहायता, स्थितिकरण, इत्यादि सब उसकी विविध स्फुरणायें हैं।
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