Book Title: Karm Rahasya
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendra Varni Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 226
________________ ३२- सहज व्यवस्था २११ वाले पक्षका तथा पुण्य-पाप वाले पक्षका विस्तार किया गया है इसलिये साधारण दृष्टिसे देखनेपर इन दोनोंमें भेद दीखने लग जाता है । इन दोनों पक्षोंका जो अत्यन्त स्थूल तथा संक्षिप्त विवेचन अध्यात्म शास्त्रोंमें निबद्ध है उसका यहां इतना सूक्ष्म विवेचन किया गया है कि साधारण बुद्धि उसका अध्ययन करते हुए घबरा जाती है । तथापि मेरा स्वाध्याय- प्रेमियोंसे यह अनुरोध है कि वे इस अनुयोगको निष्प्रयोजन न समझकर प्रयोजनभूत समझें। अपने आभ्यन्तर विधानका सुनिश्चित तथा असन्दिग्ध परिचय प्राप्त करनेके लिये और साथ-साथ अपने परिणामोंके सूक्ष्मातिसूक्ष्म उतारचढ़ावको पकड़नेके लिये इस अनुयोगका अध्ययन अवश्य करें । छोटी-छोटी पुस्तकों में उसकी भूमिका मात्र ही प्रस्तुत की जा सकती है, विषय विस्तार नहीं। पहले 'कर्म सिद्धान्त' नामक पुस्तक प्रकाशित हुई और अब यह पुस्तक प्रकाशमें आ रही है । दोनों एक दूसरेकी पूरक हैं, परन्तु दोनों मिलकर भी करणानुयोगके विस्तृत विषयकी भूमिका मात्र ही हैं। ॐ शम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248