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२-कर्म खण्ड जिस प्रकार मनके विषयमें कहा गया है उसी प्रकार अन्तकरणके अन्य तीन अंगोंके विषयमें भी कहा जा सकता है। दोनों भृकुटियोंके मध्यमें स्थित षोडशदल-कमलके आकारवाला आज्ञाचक्र द्रव्य-बुद्धि है, और उसकी पृष्ठ-भूमिमें स्थित निर्णय करनेकी शक्ति भाव-बुद्धि है। कण्ठ-स्थानमें स्थित द्वादशदल-कमलके आकारवाला विशुद्धि-चक्र द्रव्यचित्त है और उसकी पृष्ठभूमिमें स्थित चिन्तन करनेकी शक्ति भावचित्त है। नाभि-स्थानपर स्थित चतुर्दल-कमलके आकारवाले मणिपूर चक्रको हम द्रव्य-अहंकारके स्थानपर समझ सकते हैं। इसकी पृष्ठभूमिमें स्थित मैं-मेरा, तू-तेरा रूप द्वन्द्व करनेवाली शक्ति भाव-अहंकार है। ३. वचन
वचन भी दो प्रकारका है-द्रव्यवचन और भाववचन । कण्ठतालु जिह्वाके स्पन्दनसे जिसकी अभिव्यक्ति होती है और कानोंके द्वारा जो सुना जाता है वह द्रव्यवचन है। इसका कारण यह है कि जिन कण्ठ तालु आदि के द्वारा यह अभिव्यक्त होता है वे तो परमाणुओंके द्वारा निर्मित होनेके कारण द्रव्यात्मक हैं ही, इनके स्पन्दनसे सुना जाने योग्य जो शब्द होता है वह भी वास्तवमें द्रव्यात्मक है, क्योंकि वह शब्द वर्गणा नामक किन्हीं विशेष जातिके परमाणुओंसे निर्मित है, जिसका उल्लेख अगले अधिकारमें किया जानेवाला है। यह द्रव्य वचन दो प्रकारका है, अन्तर्जल्प तथा बहिर्जल्प । बाहरमें बोला तथा सुना जानेवाला बहिर्ज़ल्प है और अन्दरमें बोला तथा सुना जानेवाला अन्तर्जल्प है । बहिर्जल्प सर्व प्रसिद्ध है । अन्तर्जल्प यद्यपि सर्वप्रसिद्ध नहीं है तदपि इसकी प्रतीति आ-बालगोपाल सबको होती है। हम अन्दरमें मनके द्वारा निरन्तर किसीसे कुछ बातें किया करते हैं। वहाँ बातें करनेवाला तो 'अहं' होता है और उन्हें सुननेवाला 'इदं'। ये दोनों ही क्योंकि अन्तष्करण हैं इसलिये उनके द्वारा बोला गया तथा सुना गया शब्द अन्तर्जल्प है।
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