________________
११६
२- कर्म खण्ड
जाति-भेद हो जाना स्वाभाविक है । लोकमें पृथिवी, अं, तेज और वायु ऐसे चतुर्विध भूत प्रसिद्ध हैं जिनके संयोग से इस लोकके समस्त दृष्ट पदार्थोंका निर्माण हुआ है। ये चारों भूत यद्यपि मूलमें जाकर देखनेपर परमाणु नामक एक ही जातिके हैं, तदपि व्यवहार भूमिपर इनमें जाति-भेद प्रत्यक्ष है ।
३. वर्गणा
यद्यपि ये चार भूत भी परमाणुओंसे ही निर्मित हैं, स्वतन्त्र कुछ नहीं हैं, तदपि ये साक्षात् रूपसे परमाणुओंके द्वारा नहीं बने हैं, परम्परा रूपसे बने हैं । परमाणुओंके योगसे सर्वप्रथम एक प्रकारका अति सूक्ष्म स्कन्ध बनता है जिसे शास्त्रों में 'वर्गणा' नाम दिया गया है। विज्ञान इसे मालीक्यूल (Molecule) कहता है । ऐसी-ऐसी अनेक वर्गणाओं या मालीक्यूलोंके योग से पृथिवी आदि भूत बनते हैं, और इन भूतोंके योगसे सकल दृष्ट पदार्थ बनते हैं । यद्यपि परमाणु एक ही जातिके होते हैं परन्तु उनके योगसे जो वर्गणायें बनती हैं उनमें जाति-भेद उत्पन्न हो जाता है । वह जातिभेद क्यों उत्पन्न हो जाता है। इसका विस्तृत विवेचन पदार्थ - विज्ञान अथवा कर्म - सिद्धान्त नामक पुस्तक में पहले ही किया जा चुका है।
वर्गणा नामक ये सूक्ष्म स्कन्ध पांच प्रकारके बताये गये हैंआहारकवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा, तैजसवर्गणा तथा कार्मणवर्गणा । पांचों उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं । आहारक वर्गणा इन पांचोंमें सबसे अधिक स्थूल अथवा सबसे कम सूक्ष्म है, भाषावर्गणा उसकी अपेक्षा अधिक सूक्ष्म है, मनोवर्गणा उसकी अपेक्षा अधिक सूक्ष्म, तैजस वर्गणा उसकी अपेक्षा अधिक सूक्ष्म और कार्मण वर्गणा सबसे अधिक सूक्ष्म है । सबसे स्थूल आहारक वर्गणाओंके संश्लेषसे औदारिक शरीर बनता है, इसीलिये तीनों शरीरोंमें यह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org