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२- कर्म खण्ड होता है, त्यों-त्यों उत्तरोत्तर स्यूल होता हुआ कार्यके रूप में परिणतः होता चला जाता है। इसलिये कार्यका त्याग करनेसे कर्मका त्याग नहीं होता है, कारणका त्याग करनेसे होता है। डाली काटनेसे वृक्ष नष्ट नहीं होता, मूलोच्छेदनसे नष्ट होता है। जिस प्रकार एक डाली काट देनेसे उसी स्थानपर एक दूसरी डाली उत्पन्न हो जाती है, उसी प्रकार एक कार्यका त्याग कर देनेसे तुरन्त दूसरे कार्य में प्रवृत्ति प्रारम्भ हो जाती है। इस हेतुसे ज्ञानीजन कार्यको न पकड़कर कारणको पकड़ते हैं। कुत्ता बन्दूकसे निकली गोलीको पकड़ता है, जबकि सिंह गोली तथा बन्दूकको न पकड़कर बन्दूक चलाने वालेको पकड़ता है। यही सिद्धान्त यहाँ भी लागू कीजिये। कर्मत्यागका. उपदेश वास्तवमें कर्म-त्यागके लिये न होकर कामनात्यागके लिये है। वासना-त्यागका उपदेश संस्कारोच्छेदके लिये, संस्कारोच्छेदका उपदेश बन्धच्छेद या पारतन्त्र्योच्छेद के लिये, पारतन्त्र्योच्छेदका उल्लेख तन्मूलक आभ्यन्तर दुःखोच्छेदके लिये और दुःखोच्छेदका उल्लेख निराकुल सुखकी प्राप्तिके लिये है। जिस प्रकार अन्धकारका विनाश तथा प्रकाशकी प्राप्ति दोनों एक ही बात है, उसी प्रकार आभ्यन्तर दुःखका उच्छेद तथा निराकुल सुखकी प्राप्ति वास्तवमें एक ही बात है।
गुरुओंका यह आशय स्पष्ट हो जानेपर हमें यह कहनेमें कोई कठिनाई नहीं है, कि दोनों ही कर्मों में समान रूपसे कामना विद्यमान होते हुए भी इनमें कुछ विशेषता अवश्य है । वह विशेषता यह है कि सकाम कर्मकी कामना फल-भोगकी आकांक्षासे युक्त होनेके कारण बन्धनकारी है और निष्काम कर्मकी कामना फलभोगसे निरपेक्ष केवल दूसरेकी प्रसन्नता या हितके लिये होनेके कारण बन्धनकारी नहीं है।
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