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२८ - संस्कार
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सज्जन जनोंकी संगतिसे अच्छे संस्कार पड़ते हैं, यह बात जगप्रसिद्ध है । शास्त्रों में भी व्यक्तिके गर्भावतरणसे लेकर उसके मरण पर्यन्त ५६ संस्कारों का उल्लेख प्राप्त होता है ।
३. संस्कार-निर्माण क्रम
इस परसे संस्कार निर्माणका सिद्धान्त निर्धारित कर लेना चाहिए । अच्छा या बुरा कोई भी कार्य करनेपर उसका प्रभाव चित्तपर अवश्य पड़ता है । कार्य समाप्त हो जाता है परन्तु चित्तपर पड़ा उसका यह प्रभाव समाप्त नहीं होता । भले ही अपनी पूर्वावस्था में वह प्रतीतिका विषय बन न पाये परन्तु वह होता अवश्य है, जिसे हम तर्कके द्वारा सिद्ध कर सकते हैं । देगची में चावल डालकर पकनेके लिये अग्निपर रख दिये । अब बताइये कि प्रथम क्षण में वे कुछ न कुछ पके या नहीं ? यदि सर्वथा नहीं पके तो द्वितीय क्षण में भी इसी प्रकार सर्वथा नहीं पके, तृतीय क्षणमें भी इसी प्रकार सर्वथा नहीं पके । इस प्रकार किसी भी क्षणमें वे यदि सर्वथा पके नहीं तो आध घंटेके पश्चात्वाले क्षणमें क्या सहसा पक गये ? इसी प्रकार यहाँ भी समझना । प्रथम बार किसी कार्यके करनेपर यदि उसकी आदत सर्वथा नहीं पड़ी तो द्वितीय बार करनेपर भी उसी प्रकार सर्वथा नहीं पड़ी, तृतीय बार करनेपर भी नहीं पड़ी । इस प्रकार किसी भी बार उसे करनेपर यदि आदत सर्वथा नहीं पड़ी तो पचासवीं बार करनेपर क्या उसकी आदत सहसा पड़ गई ?
इसपर से यह सिद्धान्त निर्धारित हो जाता है कि चित्तपर पड़ा कार्यका आद्य प्रभाव कितना भी धीमा क्यों न हो, होता अवश्य है । हम छद्मस्थोंकी प्रतीतियाँ अत्यन्त स्थूल होती हैं, अर्थात् स्थूल वस्तुका ही ग्रहण करती हैं, सूक्ष्मका नहीं । जिसप्रकार हमारा ज्ञान परमाणुका ग्रहण करनेके लिये समर्थ नहीं है, उसीप्रकार इस अत्यन्त क्षीण आद्यप्रभावका भी ग्रहण करने के लिये
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