Book Title: Karm Rahasya
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendra Varni Granthmala

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Page 196
________________ २९-दस करण १८१ समयमें एक ही होता है। उपशमके कालमें उसी संस्कारका क्षय क्षयोपशम, तथा क्षय क्षयोपशमके कालमें उसी संस्कारका उपशम सम्भव नहीं। इसी प्रकार क्षयके कालमें उसीका उपशम, क्षयोपशम, तथा उपशम क्षयोपशमके कालमें उसीका क्षय सम्भव नहीं। एक समयमें इन तीनोंमें से कोई एक ही करण होता है। किसी एक संस्कारका क्षय और किसी दूसरे संस्कारका क्षयोपशम अथवा उपशम हो यह सम्भव हो सकता है, परन्तु यहां उसकी विवक्षा नहीं है । इस प्रकार किसी एक समयमें किसी एक परिणामके हेतुसे बन्ध, उदय, सत्त्व, अपकर्षण, उत्कर्षण, संक्रमण ये छः और उपशम, क्षय, क्षयोपशममें से कोई एक, ऐसे सात करण युगपत् होते हैं। सहज तथा स्वाभाविक होनेके कारण संस्कारोंके इस विधानमें किसी प्रकारका हेर-फेर सम्भव नहीं । निधत्त तथा निकाचित जातिके कठोर संस्कारोंमें बन्ध, उदय, सत्त्व ये तीन ही करण सम्भव हैं, क्योंकि उनमें अपकर्षण आदिका निषेध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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