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२९-दस करण
१७३.
स्थितिमें अन्तर पड़ता है उन्हींके उदयकालमें अन्तर पड़ता है, उनके अतिरिक्त अन्य जो संस्कार सत्तामें पड़े हैं उनमें कुछ अन्तर नहीं पड़ता। यह अन्तर कोई छोटा-मोटा नहीं होता है, एक क्षणमें करोड़ों अरवों वर्षोंकी स्थिति घट-बढ़ जाती है ।
जिसप्रकार स्थितिका अपकर्षण-उत्कर्षण होता है, उसी प्रकार अनुभागका भी होता है। विशेषता केवल इतनी है कि स्थितिके अपकर्षण-उत्कर्षण द्वारा कर्मों या संस्कारोंके उदयकालमें अन्तर पड़ता है, और अनुभागके अपकर्षण-उपकर्षण द्वारा उनकी फलदान शक्तिमें अन्तर पड़ता है। अपकर्षणके द्वारा तीव्रतम शक्तिवाले संस्कार एक क्षणमें मन्दतम हो जाते हैं और उत्कर्षणके द्वारा मन्दतम शक्तिवाले संस्कार एक क्षणमें तीव्रतम हो जाते हैं।
कुसंगति अथवा सुसंगतिके कारण व्यक्तिके संस्कारों में परिवर्तन होता देखा जाता है। इसी प्रकार अध्ययन-अध्यापन मनन-चिन्तन आविके द्वारा भी संस्कारोंमें आमूल-चूल परिवर्तन आ जाता है। अभ्यासमें बड़ो शक्ति है; व्यक्ति जैसा कुछ विचारता रहता है, जैसा कुछ बोलता रहता है, और जैसा कुछ करता रहता है, वैसा ही विचारने, बोलने तथा करनेका अभ्यास उसे हो जाता है। इस अभ्यासके द्वारा जहां नये संस्कारोंका निर्माण होता है, वहां ही सत्ताके कोशमें स्थित पुराने संस्कारोंका रूप-परिवर्तन भी साथ-साथ होता रहता है। अशुभ संस्कार बदलकर शुभ हो जाते हैं और शुभ संस्कार अशुभ । पाप बदलकर पुण्य हो जाता है और पुण्य बदलकर पाप । संस्कार-परिवर्तनके इस विधानको सैद्धान्तिक भाषामें 'संक्रमण' कहा जाता है। व्यक्ति यदि चाहे तो इस विधानसे लाभ उठाकर शीघ्र ही अन्ध-लोकसे ऊपर उठ सकता है और ज्योति-लोककी ओर प्रयाण कर सकता है, अर्थात् अपने
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