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२१ - शरीर
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उनका उल्लेख तैजस तथा कार्मण इन दो नामोंसे किया गया है । यद्यपि काय या शरीर कहने से प्रायः बाहरवाले इस अति स्थूल औदारिक शरीरका हो ग्रहण होता है, परन्तु सिद्धान्तमें प्रयुक्त काय शब्द इन तीनों शरीरोंको युगपत् ग्रहण करता है । स्थूल होनेके कारण भले ही यह शरीर अधिक सत्य दिखाई देता हो, परन्तु तात्त्विक दृष्टिसे देखनेपर भीतरवाले तेजस तथा कार्मण शरीर इसकी अपेक्षा अधिक सत्य हैं, क्योंकि मृत्युके अवसरपर यह शरीर तो अपना त्यागपत्र देकर जीवात्माका साथ छोड़ देता है परन्तु सच्चे मित्रोंकी भांति तेजस तथा कार्मण शरीर उसका साथ नहीं छोड़ते हैं, और भव-भवान्तर तक उसका साथ निभाते रहते हैं। जबतक जीवात्मा स्वयं इन्हें साथ छोड़ देनेके लिए नहीं कहता है तबतक ये एक क्षण के लिये भी उसकी सेवासे विरत नहीं होते । २. परमाणु
इन तीनों शरीरोंका अध्ययन करनेसे पहले हम सर्वप्रथम उस द्रव्यका अध्ययन करें जिससे कि इन शरीरोंका निर्माण होता है, और पहले अधिकारमें जिसका उल्लेख परमाणुके नामसे किया गया है । इस जगत् में दो द्रव्य प्रसिद्ध हैं - एक चेतन और दूसरा जड़ । चेतन द्रव्यका उल्लेख यद्यपि पृथक्से किया नहीं गया है, तदपि ज्ञान तथा चेतन शक्तिके रूपमें अथवा आत्मा या जीवात्माके रूपमें उसका कथन प्रसंगवशात् यत्र-तत्र किया जा चुका है, और आगे भी किया जाता रहेगा। दूसरा जो जड़ द्रव्य है वही यहां प्रकृत है ।
इस द्रव्यका छोटेसे छोटा भाग परमाणु कहलाता है । परमाणु यद्यपि एक ही प्रकार का है, अर्थात् संख्यामें अनेक होते हुए भी सब परमाणु यद्यपि एक ही जातिके हैं तदपि परस्परमें संश्लिष्ट या सम्बद्ध हो जानेपर जो सूक्ष्म या स्थूल स्कन्ध बनते हैं उनमें
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