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१२.
२-कर्म खण्ड. अच्छा या बुरा बोलते हैं, अथवा अच्छा या बुरा करते हैं उस सबके संस्कार ज्यों-के-त्यों कार्मण शरीर नामक इस मसाले पर अंकित हो जाते हैं। विवाहके अंवसरोंपर जिस प्रकार मातायें घरोंकी भित्तियोंपर हाथसे छापे लगा देती हैं, उसीपर हमारा प्रत्येक कर्म चित्तभित्तिपर अंकित होता चला जाता है (देखो पुस्तकका कवर)। यह कार्मण शरीर ही वास्तवमें चित्तका वह अक्षय कोष है जिसे कि पहले Subconcience या उपचेतना कहा है। औदारिक शरीरको देखने पर हमें यह पता नहीं चलता कि वह शरीर कहाँ है और उसपर वह अंकन कहाँ तथा किस रूपमें हुआ है। __जिस प्रकार कोई विशेष अवसर प्राप्त होनेपर मशीनके माध्यमसे हम टेपपर अंकित सब कुछ ज्योंका त्यों सुन सकते हैं, उसी प्रकार विशेष काल प्राप्त होनेपर मन वचन कायके माध्यमसे हम कार्मण शरीरपर अथवा उसमें बन्धी कार्मण-वर्गणाओंपर अंकित सब कुछ ज्योंका त्यों अनुभव कर सकते हैं। जैसा संस्कार उसपर अंकित होता है वैसा हो मनके द्वारा हम विचारते हैं, वैसा ही वचनके द्वारा हम बोलते हैं और वैसा ही शरीरके द्वारा हम कार्य करते हैं, वैसा ही ज्ञानेन्द्रियोंके द्वारा हम जानते हैं. वैसा ही कर्मेन्द्रियोंके द्वारा हम करते हैं और वैसा ही अन्तष्करणके द्वारा हम भोगते हैं।
भूत, वर्तमान तथा भविष्यत् तीनों ही कालोंमें, हमारे मन वचन कायकी तथा इनके बाह्याभ्यन्तर सकल अंगोपांगोंकी, इनकी समस्त गतिविधियोंकी, इनके योगकी अथवा उपयोगकी, इनके ज्ञातृत्वकी, कर्तृत्वकी तथा भोक्तृत्वकी वाहक तथा परिचालक सब कुछ कार्मण नामवाली यह उपचेतना ही है। तैजस-शरीरकी भी समस्त कार्यवाही इसीकी प्रेरणासे होती है। इसलिये भले ही
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