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१९ - योग - उपयोग
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सी अथवा sensation सी प्रतीत होती है वह भी वास्तवमें चेतनाका परिस्पन्दन है । विस्तारके लिये यहाँ अवकाश नहीं है ।
समग्रको युगपत् न जानकर प्वायंट लगाकर जानना ज्ञातृत्व पक्षका योग है, क्योंकि उसमें उपयोग एक विषयको छोड़कर दूसरे विषयकी तरफ़ दौड़ता है । समग्रको युगपत् आत्मसात् न करके प्वायंट लगाकर आत्मसात् करना भोक्तृत्व पक्षका योग है, क्योंकि ज्ञातृत्व पक्षकी भाँति यहाँ भी उपयोग एक विषयको छोड़कर दूसरे विषयकी ओर दौड़ता है। इसीप्रकार समता पूर्वक समग्र के प्रति काम न करके किसी एकके प्रति काम करना कर्तृत्व पक्षका योग: है । प्वायंट लगाना क्योंकि अन्तष्करण अथवा संकल्पका काम है, इसलिये अन्तष्करणके जीवित रहनेपर ही ज्ञातृत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व ये तीनों बन्धनकारी हैं, उसके मर जाने पर नहीं ।
* “अपने रागद्वेषात्मक संकल्प ही सब दोषों के मूल हैं" जो इस प्रकार के चिन्तन में उद्यत होता है उसके मन में समता उत्पन्न होती है उससे उसकी वासनाएं और तृष्णायें प्रक्षीण हो जाती हैं ।
★ तपस्या से व्यक्ति पूर्व संचित कर्मों को क्षीण कर विशुखि को प्राप्त करता है ।
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