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१- अध्यात्म खण्ड
वनानेका प्रयत्न न करें । स्वयं ऊपर उठने के साथ-साथ सबको ऊपर उठानेका प्रयत्न करें। यही प्रभावना अंग है ।
३. पुरुषार्थ की महिमा
आप यदि पीछे हैं तो कोई चिन्ता नहीं । जहां कहीं भी आप हैं वहांसे ही आगे चलिये । इतना ही ध्यान रखिये कि अटकना नहीं है। बिना कुछ किये पिताकी सम्पत्तिसे धनाढ्य बनने की बजाए वह निर्धन अच्छा है जो अपने पुरुषार्थसे अपना तथा अपने कुटुम्बका पेट पालता है । जो जन्मसे ही अधिक गुण लेकर पैदा हुआ है, ऐसे गुणवानकी अपेक्षा वह गुणहीन अच्छा है जो वर्त - मानमें अपने दोषोंसे ऊपर उठनेका प्रयत्न कर रहा है ।
आगे बढ़िये, इसीमें पुरुषके पुरुषार्थका सार्थक्य है । पुरुषार्थकी परीक्षा काम परसे नहीं होती। हीन शक्तिवाला अधिक पुरुषार्थं करके थोडा काम कर पाता है और अधिक शक्तिवाला थोड़ा पुरुषार्थ करके अधिक काम कर लेता है। श्रमिक सारे दिन परिश्रम करके भी उतना नहीं कमाता जितना कि कोई सेठ एक इशारेमें कमा लेता है । एक चींटी जितनी देर में चावलका एक दाना लेकर दीवारपर एक मीटर चढ़ती है उतनी ही देरमें एक मजदूर एक क्विटलका बोरा लेकर तीन मंजिल चढ़ जाता है । इनमें पुरुषार्थं किसका अधिक है ? एक करोड़पति एक लाखका दान देकर भी क्या उतना दे पाता है जितना कि तीन दिनका कोई भूखा बड़ी कठिनाईसे प्राप्त एक पाव चावलमें से एक चुटकी देकर दे देता है ?
इस सब कथन परसे इतना ही समझिये कि आप छोटे नहीं हैं, न ही बड़े हैं। आप हैं केवल एक पथिक । पथिक बने रहनेमें ही आपका कल्याण है । न तो प्रमादवश अपनी शक्तिको छिपाइये और न अंहकारवश दूसरोंका उपहास तथा तिरस्कार कीजिए। •
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