________________
७६
२. बुरा भी अच्छा
इसी प्रकार ज्ञान इच्छा प्रयत्न प्रेम आदि सबको जानना । समग्रको न जानकर क्रमसे एक-एकको जाननेवाला विषयोन्मुखी ज्ञान विकल्पोत्पादक होनेके कारण बुरा है, परन्तु समग्रको युगपत् ग्रहण करनेवाला तत्त्वोन्मुखी ज्ञान समता प्रदायक होनेके कारण अच्छा है । विषयोन्मुखी इच्छा, वासना - वृद्धिकी हेतु होनेके कारण बुरी है, परन्तु समग्रको आत्मसात् करनेवाली तत्त्वोन्मुखी इच्छा समतावृद्धिको हेतु होनेसे अच्छी है । केवल संज्ञा-भेद है । विषयोन्मुखी इच्छाको कामना, अभिलाषा आदि निन्दनीय शब्दोंके द्वारा कहा जाता है, और तत्त्वोन्मुखो इच्छाको श्रद्धा, रुचि, अन्तःप्रेरणा, जिज्ञासा आदि प्रशंसनीय शब्दोंके द्वारा । विषयार्जनके प्रति किया गया प्रयत्न वासना - वृद्धिका हेतु होनेसे बुरा है, परन्तु तत्त्वोन्मुखो होनेपर वही समता वृद्धिका हेतु होनेसे प्रशंसनीय है । विषयोन्मुखी प्रेमको आसक्ति रति राग आदि नामों के द्वारा अभिहित करके उसकी निन्दा की जाती है, परन्तु तत्वोन्मुखी होनेपर वही मैत्री प्रमोद कारुण्य आदिका रूप धारण करके जगद्पूज्य बन जाता है ।
वाल्मीकि सरीखे भयंकर डाकू ही दिशाफेर हो जनोपर सफल साधक बन जाते हैं । इसीलिये अपनी किसी भी शक्तिका तिरस्कार नहीं करना है, केवल दिशामें फेर करना है । आज जितनी अधिक विषयासक्ति हैं, दिशाफेर हो जानेपर वह उतनी ही अधिक तत्त्वा-. सक्ति बन जायेगी । भौतिक विज्ञानमें आज जिनकी बुद्धि अधिक काम कर रही है, वही दिशाभेद हो जानेपर आध्यात्मिक विज्ञानमें प्रगति करेगी । जो आज अपनी सन्तानको अधिक प्रेम करता है, वही दिशाफेर हो जानेपर विश्वको आत्मसात् करनेमें सफल होता है । जो प्रेम अपने शरीर के प्रति अथवा अपने कुटुम्बके प्रति होनेके कारण आज स्वार्थ नाम पा रहा है वही दिशाफेर हो जानेपर समस्त विश्वके प्रति होकर समता नाम पाता है ।
Jain Education International
१- अध्यात्म खण्ड
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org