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१८-कर्म-करण
१. त्रिविध करण . कृतक कर्म तीन प्रकार के कहे गये हैं-ज्ञातृत्व, कर्तृत्व तथा भोक्तृत्व । कारण अथवा करणके बिना कोई भी कार्य होना सम्भव नहीं, इसलिए इन तीनों कार्यों के कोई न कोई कारण अथवा करण अवश्य होने चाहिए। आइये उनका अन्वेषण करें। जिसके द्वारा अथवा जिसकी सहायता से कोई कर्म या कार्य किया जाता है उसे करण कहते हैं । व्याकरण में इसका अन्तर्भाव करण-कारक में होता है, न्याय की भाषा में इसे हेतु कहते हैं और सिद्धान्त की भाषा में यह 'साधन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रकार कारण, करण, हेतु तथा साधन ये चारों एकार्थवाची संज्ञायें हैं।
त्रिविध कर्म के क्षेत्र में उपर्युक्त करण दो प्रकार का हैबहिर्करण तथा अन्तष्करण । बाहर में जिनका प्रत्यक्ष होता है ऐसे नेत्र-श्रोत्र, हाथ-पांव आदि बहिर्करण हैं और बाहर में जिसका प्रत्यक्ष नहीं होता है ऐसा चित्त अन्तष्करण है। बहिर्करण के दो विभाग हैं, ज्ञानकरण और कर्मकरण । ज्ञातृत्व के साधन को
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