________________
१४-विकास
७९
नहीं होती, यह बात सत्य है परन्तु साधन हो साध्य नहीं है। रोग शमन हो जानेपर भी यदि औषधीका त्याग न करे तो वह स्वयं रोग बनकर रह जाये । इसी प्रकार साध्यको प्राप्ति हो जानेपर भी यदि साधनका त्याग न करे तो वह ही जीवनका भार बन जाये। जिसप्रकार औषधिका ग्रहण उसका शोघ्रातिशीघ्र त्याग कर देनेके लिये होता है, सदा ग्रहण करते रहनेके लिये नहीं; इसी प्रकार व्यवहार भले ही वह किसी भी क्षेत्रका क्यों न हो, दर्शनके क्षेत्रका, हो, ज्ञानके क्षेत्रका हो, चारित्रके क्षेत्रका हो या तपके क्षेत्रका हो, शीघ्रातिशीघ्र छोड़नेके लिये होता है, सदा उसके साथ चिपके रहनेके लिए नहीं। __ आगे आगे चलते हुए पीछे पीछेको छोड़ते रहना, और पीछे पीछेको छोड़ते हुए आगे आगे चलते रहना ही विकास क्रमका सूत्र है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org