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| * इन्द्रिया स्वभावतः ही बहिर्मुखी होती है ।
इसीलिये मनुष्य बाहर की ओर ही देखता है। अपने अन्दर की ओर नहीं । कोई बिरला या पीर पुरुष ही इन्द्रियों का संयम करके अमृतत्व को चाहना हुआ अपनी अन्तरात्मा को देखना ।। है, आत्म परीक्षण और आत्मचिन्तन में प्रवृत्त । होता है।
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