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१२. आगे बढ़ो
१. अटको नहीं चलो
हृदय के स्वरूप का उसकी गहनताका तथा धार्मिक क्षेत्र में उसके महत्वका परिचय न होनेके कारण व्यक्ति समता तथा शमताके स्वरूपका अवधारण नहीं कर सकता। तब उसे हस्तगत करनेका तो प्रश्न ही क्या । ये सब बातें यद्यपि शास्त्रमें निबद्ध हैं परन्तु कितने व्यक्ति हैं जो इस रहस्यको समझने का प्रयत्न करते हैं। यद्यपि आध्यात्मिक चर्चायें बहुत बढ़ गयी हैं, और इसी प्रकार तप तथा त्याग भी, परन्तु समताको चर्चाका विषय किसने बनाया है
और तप तथा त्यागमें समताको किसने स्थान दिया है, यह बात भगवान् ही ठीक जानते हैं। उसके .अभावमें सभी अटके हुए हैं, कोई किसी भूमिमें और कोई किसी भूमिमें, कोई किसी सोपानपर और कोई किसी सोपानपर । अटकन न हटे तो आगे कैसे बढ़ें ?
गुरुजनोंका समस्त प्रयास, उनका उपदेश तथा शास्त्र-रचना आदि सब मुमुक्षुओंके कल्याणके लिये हैं, अपने किसी स्वार्थका पोषण करने के लिये नहीं। परन्तु मोह तथा अविद्याका ही यह कोई अचिन्त्य माहात्म्य है कि उसकी शरणमें आकर भी व्यक्ति अटका रहता है । भले ही वेष बदल ले, भले ही क्रिया बदल ले, भले ही
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