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३-चित्त दर्शन
ज्ञानका यह कोष अक्षय है। अनन्त विपय निकल जानेपर भी यह कभी समाप्त नहीं होता। मनोवैज्ञानिक लोग इसे Subconcience (उपचेतना) कहते हैं। विकल्पोंके रूप में उदित हो होकर डूबता रहनेवाला जो ज्ञान बाह्य स्तर पर प्रतीत होता है वह यद्यपि व्यवहार भूमिपर concience या चेतना नामसे प्रसिद्ध है तदपि subconcience या उपचेतनाकी यह एक क्षुद्रतम स्फुरणा मात्र है और उनके समक्ष कुछ भी नहीं है। सागरका उदाहरण दें तो हम विकल्प बोधियोंसे युक्त इस बाह्य concience या चेतनाकी तुलना उसके उस ऊपरी तलसे कर सकते हैं जिसमें कि लरंगावली उठती तथा डूबती प्रतीत हो रही है । परन्तु subconcience या उपचेतनाकी तुलना तल भागमें स्थित उस महोदधिके साथकी जाती है जिसमें से कि ये तरंगें उदित हो रही हैं और जिपके वक्षपर कि ये खेल रही हैं। मनोवैज्ञानिकोंकी दृष्टिमें बल-भागवर्ती उपनेतनाके समक्ष इस वैकल्पिक बाह्य चेतनाका कोई मूल्य नहीं है।
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