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१- अध्यात्म खण्ड
उसके ज्ञेय हैं। ज्ञाता 'अहं' है और ज्ञेय 'इदं' । ये दोनों एक दूसरेसे पृथक् स्वतन्त्र सत्ताधारी पदार्थ हैं, जिनका परस्पर में कोई सम्बन्ध नहीं । दोनों के नाम तथा रूप पृथक् हैं और उनके क्षेत्र भी भिन्न हैं । ज्ञातारूप 'अहं' का नाम रामलाल है और ज्ञेयरूप 'इंदं' का नाम भगवान् है । ज्ञातारूप 'अहं' का रूप उसके शरीरका आकार है और ज्ञेयरूप 'इदं' का रूप प्रतिमाका आकार है । ज्ञातारूप 'अहं'" का क्षेत्र रामलालका शरीर है और ज्ञेयरूप 'इदं' का क्षेत्र प्रतिमाका शरीर है। बस इन दोनोंकी यह त्रिविध पृथकता दर्शानी ही मुझे इष्ट थी । इसे ध्यानमें रखिये और मेरी अँगुली पकड़कर अपने भीतर अन्तष्करणमें प्रवेश कीजिए ।
अन्तष्करण में प्रतीयमान आभ्यन्तर ज्ञानमें भी बाह्य ज्ञानकी भाँति अहं इदं अथवा ज्ञाता ज्ञेय विद्यमान हैं। उनके नाम और रूप भी वही हैं । रामलालके रूपको धारण करनेवाला 'अहं' ज्ञाता है और प्रतिमाके रूपको धारण करनेवाला 'इदं' ज्ञेय है । आँख बन्द कर लेनेपर भी वहाँ इन दोनों की प्रतीति उसी प्रकारसे होती है जिस प्रकार कि आँख खोल लेनेपर बाहरमें होती है । भीतर अन्तष्करणमें भी वैसा ही रामलाल, वैसा ही मन्दिर तथा उसमें स्थित वैसी ही भगवत्प्रतिमा स्पष्ट प्रतीतिका विषय बन रही है । भीतर में स्थित यह रामलाल भी उसीप्रकार 'अहमिदं जानामि' कहता प्रतीत हो रहा है जिस प्रकार कि बाह्य रामलाल । अन्तर केवल इतना है कि बाह्य रामलालका तथा उसके समक्ष विद्यमान बाह्य प्रतिमाका दर्शन जिसप्रकार दूसरे व्यक्ति कर रहे हैं उस प्रकार आभ्यन्तर रामलालका तथा उसके समक्ष विद्यमान आभ्यन्तर प्रतिमाका प्रत्यक्ष दूसरे व्यक्ति करनेके लिए समर्थ नहीं हैं ।
बाह्य रामलालके अतिरिक्त यह द्वितीय आभ्यन्तर रामलाल अतिरिक्त यह द्वितीय आभ्यन्तर प्रतिमा यह विचारणीय है । क्या ये दोनों अपने
और बाह्य प्रतिमा के वास्तवमें क्या वस्तु हैं
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