Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण : "हरिवंशपुराण" महाभारत का ही प्रक्षिप्त अंश है। इसकी प्राचीनता असन्दिग्ध रही है। इसी पुराण में कृष्ण चरित्र का सर्वप्रथम गोपियों से सम्बन्ध बताया गया है। हरिवंश के विष्णु पर्व के 128 अध्यायों में कृष्ण जीवन की सम्पूर्ण गाथा दी गई है। इसमें कृष्ण के रूप का तथा कृष्ण के प्रति गोपियों के आकर्षण का सविस्तार वर्णन . मिलता है। सुन्दर कृष्ण हरितालार्द्र पीतवस्त्र पहनकर और सुन्दर तथा आकर्षक दिखाई देते हैं। बालिकाओं, वृद्धाओं तथा युवतियों-सभी को कृष्ण अतिप्रिय लगते हैं। इस पुराण में पूतनावध, कालियदमन, नागपत्नियों द्वारा स्तुति, शकट-भंजन, यमलार्जुन पतन, रासलीला, कंस धर्नुभंग, कुवलीयापीड प्रसंग, चाणूर-मुष्टिक, बलराम का गोकुल गमन, रुक्मिणी हरण, कालयवन प्रसंग, कैलासप्रसंग, बद्रिकाश्रम में तपस्या आदि अनेक प्रसंग आये हैं। इसकी शैली गाथात्मक अथवा लौकिक है। इस प्रकार ऐसा लगता है कि यह पुराण अन्य पुराणों से प्राचीन है। कृष्ण की रासलीला का अद्भुत वर्णन भी इसमें मिलता है। इस पुराण को डॉ० शशि अग्रवाल ने उपपुराण कहते हुए कहा है कि "इसे बहुत से विद्वान् महापुराण मान लेते हैं परन्तु इसके अध्ययन से पता चलता है कि यह उपपुराण ही है।४७ हरिवंश पुराण में श्री कृष्ण के दैवीय एवं मानवीय दोनों रूपों का अपूर्व समन्वय दिखाई देता है। वे विष्णु के अवतार परब्रह्म व विराट हैं तथा सांख्यपुरुष, वीर योद्धा और महापुरुष भी। कृष्ण चरित्र को प्रभावित करने में इस पुराण का सर्वाधिक महत्त्व है। . इसमें वर्णित कथाओं का परवर्ती साहित्य पर अधिक प्रभाव पड़ा है। यहाँ अस्पष्ट और सांकेतिक रूप में वर्णित कथाएँ भी बाद के साहित्य में विस्तार और अलौकिक रूप ग्रहण करती रहीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री कृष्ण : हरिवंशपुराण के अतिरिक्त ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री कृष्ण लीलाओं के विस्तृत वर्णन हैं। कृष्ण जन्म-खण्ड के अन्तर्गत सभी लीलाओं का वर्णन है जो पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध में विभाजित है। इसमें श्री कृष्ण परब्रह्म हैं। ब्रह्मा ने श्री कृष्ण की स्तुति करते हुए कहा है कि "आप ही जगत के स्वामी हैं, जो सुख-दुःख संसार में है, सब आपका ही अंश है।"४८ एक अन्य स्थल पर भी यही कहा गया है कि "आप ही ब्रह्मधाम और निर्गुण निराकार हैं। आप ही सगुण हैं। आप ही साक्षी रूप हैं। निर्लिप्त हैं, परमात्मा हैं। प्रकृति और पुरुष के भी आप ही कारण हैं।'४९ इस प्रकार से जगत के मूल कारण के रूप में श्री कृष्ण का विशद वर्णन मिलता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में गोकुल, राधा-मन्दिर, राधा-कृष्ण का सांख्य के अनुसार प्रकृतिपुरुष के सम्बन्ध, श्री कृष्ण के अंशावतारों आदि का सुन्दर वर्णन हैं। चौथे अध्याय में