Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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यान्तीनां यत्र संकेत निकेतं निशियोषितां । निजाभरण भा भार प्रसरो विघ्न कारकः ॥२४॥
इस नगरी का विलास वैभव अपूर्व है । यत्र-तत्र संकेत गृह बने हुए हैं । रात्रि में पण्यस्त्रियाँ-वेश्याएँ अथवा अन्य भोग स्त्रियाँ इन सांकेतिक निकेतनों में नाना प्राभरणों से सज्जित, अलंकारभार से भरित जाती हैं-पाती हैं। इनके निरंकुश संचार में वह विधु-चन्द्र प्रकाश विश्नकारक प्रतीत होता है । चोर और कुलटानों को निशाकर की चाँदनी प्रिय नहीं लगती अपितु वे उसे अपने गुप्त कार्यों में बाधक ही मानते हैं क्योंकि मन-माना कार्य नहीं कर पाते । अत: अभिसारिकामों को वह विघ्न कारक प्रतीत होता है ।। २४ ।।
नित्यं सत्याग सम्पन्नर जना यत्र विमत्सराः। एकान्त संचित द्रव्यं लज्जयन्ति धनाधिपम् ॥२५॥
इस नगरी के नागरिक धर्म भावना और त्याग भाव से संयुक्त हैं। परस्पर मात्सर्य भाव से रहित हैं फिर ईर्ष्या क्यों ? अपितु स्पहा युक्त हैं । न्याय नीति पूर्वक धनोपार्जन करते हैं । सदाचार के कारण सभी न्यायोपार्जित द्रव्य-अतुल वैभव से कुबेर को भी तिरस्कृत करते हैं। अर्थात् इनकी निरुत्सुक, त्यागमयी विभूति के समक्ष स्वयं घनद कुवेर लज्जानुभव करता है। संसार में कुवेर सर्वोत्तम घनिक माना जाता है, किन्तु इस बसन्तपुर के वैभव के समक्ष उसका भी मान गलित हो गया प्रतीत होता है ॥ २५ ॥
पद्मराग प्रभाजाल लिप्ताङ्गो मरिणकुटिमे । शङ्कते कामिनो यत्र कत्त कुकुम् मानम् ॥ २६॥
यहाँ जहाँ तहाँ पद्मराम मरिण को कान्ति से द्योतित प्रङ्ग वाली मणिमय कृत्रिम पुत्तल्लिकाएँ बनी हैं जिनको देखते ही कामीजन शकाकुल हो जाते हैं। उन्हें यथार्थ कामिनी समझते हैं सोचते हैं ये साक्षात् रमणियाँ कुंकुमार्चन कर अपने मुख की शोभा बढ़ा रही हैं। राज प्रासाद में पपराग मरिणयों से बनायी गई पुत्तलिकाएं साक्षात् प्रमदा का भ्रम उत्पन्न करती हैं ।। २६ ।।
भगः सङ्गतो यस्य न समस्चना शेखरः। बभव भूपति स्तत्र नाम्ना श्रीश्वनाशेखरः॥२७॥