Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्राकारोखान सदशम देवता पत्र नान्ययम् । भस्मो करोति भूपाला मरणयन् भद पेटकम् ॥ ५५ ॥
प्राकार, उद्यान, सुन्दर मकान, देव घर आदि अन्य जो भी हो जिधर गया उधर उन सबको भस्म सात कर देता है, हे भूपाल ! समझिये यह महाभट पेटक हो गया है। जो मिला उसके पेट में समाया ।। चारों प्रोर नाश कर रहा है। किसी के वश नहीं पा रहा है। अर्थात सभी सुभद अभट हो गये हैं । सबको सामथ्य से बाहर हो गया है ॥ ८५।।
तन्निशम्य महासत्त्वाः प्रेषिता बोर पुनवाः ।
राज्ञा ते पि न संशेकु र्वमने तस्य दन्तिनः ।। ८६ ।।
यह सुनकर महीपति-राजा ने अपने महावीर सुमटों को जो वीरों में श्रेष्ठतम थे उन्हें उस गज को वश करने के लिए प्राज्ञा दी । शीघ्र ही वे उस उन्मत्त सिंह समान हाथी के समक्ष पाये । किन्तु सबका पुरुषार्थ उसो प्रकार क्षीण हो गया जैसे चन्द्रोदय से तारागरणों का। कोई भी उस दन्ति को प्राधीन नहीं कर सका। राजा के वीर भी परास्त हए । दन्ति-हाथी का श्रातङ्क बढ़ता ही गया ।। ८६॥
एवं दिन अयं तत्र पोहयनखिलाः प्रजाः। बम्भ्रमिति करो यावत् पटहस्ताबदा हतः ।। ८७ ॥ यथा हस्ति न मेतं यः कुरुते यश वसिमम् । कन्या प्रदीयते तस्मै सामन्तश्च विधीयते ।।८।।
समस्त प्रजा को पीड़ित कर डाला । इस प्रकार घोर उपद्रव करते हुए तीन दिन व्यतीत हो गये, पर किसी भी उपाय से वह शान्त नहीं हमा, अन्त में निराश हो राजा ने नगर में पटह बजवाया अर्थात डोंडी पिटवायी कि जो शूरवीर महाभाग इस उन्मत्त दन्ति के दाँत तोड़ेगा अर्थात वश में करेगा, मैं उसके साथ अपनी कन्या का विवाह वेभव पूर्वक विधिवत करूगा एवं कन्या के साथ अनेक सामन्तादि भी प्रदान करूगा प्रतएव शीघ्र ही इसे वश में करो।। ८७-८८ ।।
श्रुत्त्वेति वेगतः स्पृष्ट्वा पदहं वा मनस्ततः। प्राजुहाव गजाधीशं सोयगादुष्करः पुरः ॥ ८ ॥
यह भेरी-नाद वेषधारी कुमार ने सुना, भेरी को स्पर्श किया और मन से स्वीकार किया, शीन ही उस दुष्कर कार्यभार को ले उस काल
[ १४५