Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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अभिप्राय यह है कि संसार के भीषण कष्टों के समक्ष सपोजन्य कष्ट कुछ भी नहीं हैं ॥ ५४ ।।
निशात शस्त्र संघात घात खण्डित विग्रहाः । परस्पर परोवाव शरणा हित निपहाः ॥ ५५ ।।
नरक भव के कितने कष्ट सह, सुनिये, अति तीक्ष्ण शस्त्र के समूह से धात किये जाने पर शरीर के खण्ड-खण्ड कर दिये गये। परस्पर परीवाद कर शरण में प्राप्त का भी निग्रह कर डाला ।। ५५ ।।
महा वात महा शोत महातप कथिताः। स्व काय कत्तंन ग्रास फल भोजनाधिनः ॥५६॥ वन्तोष्ठ कण्ठ हत्पाराव मुल तालुक कुक्षिणः। वैतरण्या हता तर्षा वसा पूया सवारिण: ।। ५७ ॥ धौतासि पत्र शंकाश पत्र कृत्त्येव नान्तरे । श्व काक कङ्क गद्धा हि श्वापदानां नगान्तरे ।। ५८ ।। क्वचिद्यन्त्रौः क्वचित कुम्भी पाके रायस कष्टकैः । क्वचिच्च फूट शामस्था रोहावतरणैरपि ॥ ५६॥ शारीरं मामसं वाचं सहन्ते शरणोज्झिताः । याचदायु न किं दुःखं नरके नारकाः भृशम् ।। ६० ॥
महा वायु से ताडित होता है, महाशीत और प्रातम की व्यथा सहन करता है, नाना प्रकार से शरीर कथित-दलन-मलन किया जाता है, भोजन की चाह की तो, उसी के शरीर को काट-काट कर उसे खिलाते हैं, दांत, पोष्ठ, कण्ठ, तालु, हृदय, पसली, पेट प्रादि अंगों का च्छेदन भेदन करते हैं। उषातुर हमा तो वैतरनी नदी में ले जाकर डालते हैं जो रूधिर, राध से भरी है महान दुर्गन्ध पूर्ण हैं । सेमर के वृक्ष हैं वहां छाया की याशा से उनके नीचे गया तो पनी तलवार के समान उनके पत्तों के गिरने से शरीर क्षार-क्षार छिन्न-भिन्न हो गया । वन में भी शरण नहीं। भयंकर कुत्ते, काक छरी समान नोंच वाले गिद्धपक्षी श्रादि श्वापदों से भरे पर्वतों पर उनके द्वारा खाया गया 1 कभी यंत्रों से चीरा-फाडा गया, कभी कुम्भीपाक में पाया गया कभी पैने कांटों पर मला गया, काटों द्वारा कभी छेदा गया, और कभी शाल्मली वृक्षों पर
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